Saakhi – Guru Gobind Singh Ji Ka Hukum
गुरू गोबिन्द सिंह जी का हुक्म
कलगीधर सतगुरू प्रात:काल के समय स्नान कर, सुंदर वस्त्र पहन कर महलों से संगत समेत केसगढ़ साहब जाने के लिए रवाना हुए। रास्ते में भाई नन्द सिंह नाम का एक गुरसिक्ख नौजवान कीचड़ (कच्चे मकानों को किये जाने वाला लेपन जो गोबर, मिट्टी और फसल के कचरे से तैयार किया गया हो) से अपनी दीवार लेपन रहा था।
नन्द सिंह आस-पास की सुध भूल अपने काम में मस्त था। उसने ध्यान नहीं दिया कि गुरू साहब जी जा रहे हैं। भाई नन्द सिंह जो कीचड़ से दीवार पर लेपन कर रहा था, जब उसने दीवार पर कीचड़ी की थोपी (हाथ में लेकर जोर से फैंकना) मारी, इसके छींटे दूर-दूर तक उछले और कलगीधर जी के वस्त्रों पर भी कीचड़ के छींटों के निशान पड़ गए।
सतगुरू जी रुक गए और आवाज दी कि नन्द सिंह तूं बड़ा गुस्ताख है, आधा मिनट अटक जाता, संगत निकल जाती फिर दीवार पर कीचड़ की थोपी मारता। इसकी लापरवाही से सभी के वस्त्रों पर कीचड़ के छींटे पड़कर वस्त्र खराब हो गए हैं। इसको एक थप्पड़ मारो ताकि यह भविष्य में ऐसा न करे और इसको महसूस हो जाये कि कोई भी काम करना हो तो आगे-पीछे देख कर पूरे ध्यान से करना चाहिए।
सतगुरू जी का हुक्म सुनकर सभी सिक्खों नें गुस्से में आ जैसे किसी पर धावा बोलना होता है, उसी तरह सभी ने दीवार लीप रहे भाई नन्द सिंह को पकड़ लिया। किसी थप्पड़ मारें, किसी ने धक्के मारे, एक थप्पड़ की जगह कईयों ने नन्द सिंह के कई-कई थप्पड़ों मार कर अपने हाथ सीधे किये और नन्द सिंह को काफी चोटें लग गई।
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यह देख सतगुरू जी ने गुस्से में आकर उनको रोका और कहा कि हमनें तो नन्द सिंह को एक थप्पड़ मारने के लिए कहा था, आप सभी ने उसे बेअंत थप्पड़ और धक्के मारे हैं यह क्यों? सभी सिक्खों ने सतगुरू जी को विनती की पातशाह! आपने किसी एक सिक्ख का नाम नहीं लिया था। हम सभी आप के सिक्ख हैं सो हम सभी ने आप जी के हुक्म की पालना की है। हम आपके हुक्म से कैसे मुँह मोड़ सकते हैं?
सतगुरू जी ने सिक्खों को संबोधित करते हुए कहा भाई सिक्खों! हर मानव भूल कर सकता है। सत्गुरू नानक देव जी का फुरमान है : –
भुलण अंदरि सभु को अभुलु गुरू करतारु ॥ अंग 61
भाई नन्द सिंह ने भूल की, आपने उसे भूल की अपेक्षा कई गुणां ज्यादा सजा दे दी। आप सभी मेरे हुक्मी सिक्ख हो न ? अब मेरा हुक्म है, नन्द सिंह बड़ा खूबसूरत है, सुंदर डील-डौल वाला नौजवान सिक्ख है, अब आप में से कोई सिक्ख भाई नन्द सिंह को अपनी बच्ची का रिश्ता दे। सतगुरू जी का यह वचन सुन कर सभी ने गर्दनें झुका ली और चुप हो गए। सतगुरू कलगीधर जी ने फिर दोबारा सिक्खों को संबोधन कर कहा कि आसान हुक्म तो आप सभी ने बहुत जल्दी मान लिया। कोई सिक्ख अपनी बेटी का रिश्ता भाई नन्द सिंह को दे, यह भी मेरा हुक्म है ; आप इसको क्यों नहीं मानते?
आखिर जब किसी ने गुरू हुक्म न माना तो कंधार निवासी भाई अजब सिंह कंधारी संगत में से निकल कर आगे आया और हाथ जोड़ सतगुरू से विनम्र निवेदन किया कि पातशाह ! भाई नन्द सिंह के रिश्ते के लिए मेरी कन्या हाजिर है। सतगुरू जी ने भाई अजब सिंह को गले लगाकर वचन किया धनसिक्खी, धनसिक्खी लेकिन अजब सिंह तुम्हारे जैसे विरले ही हैं जो हुक्म की कमाई करते हैं। आसान हुक्म तो सभी बड़े चाव के साथ मानते हैं परन्तु जब कठिन हुक्म मानना पड़े तो किनारा कर जाते हैं। इंसान अपने मन की मर्जी का हुक्म बहुत जल्दी मानता है परन्तु असली हुक्मी बंदा कोई विरला है।
सतगुरू जी ने वचन किया भाई सिक्खो! मालिक ईश्वर को वह ही अच्छा लगता है, जो गुरू के हर हुक्म को बिना ना नुकर और हील हुज्जत सत्य कर मानता है। सतगुरू नानक पातशाह जी आशा की वार में फुरमान करते हैं कि जो गुरू का हुक्म मानता है वह गुरू की निगाह में स्वीकृत हो, परमात्मा के आत्म स्वरूप में अभेद हो जाता है। ऐसा हुक्मी व्यक्ति मन वांछित फल प्राप्त कर प्रभु दरगाह में मान सत्कार का सिरोपाव प्राप्त करता है। साहिब का वचन है :-
हुकमि मंनिऐ होवै परवाणु ता खसमै का महलु पाइसी ॥
खसमै भावै सो करे मनहु चिंदिआ सो फलु पाइसी ॥
ता दरगह पैधा जाइसी ॥15॥ – अंग 471
शिक्षा – हमें ईश्वर के प्रत्येक हुक्म को बिना किसी ना-नुकर सत्कार के साथ मान लेना चाहिए।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –
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