It all about a letter from Guru Gobind Singh Ji to Aurangzeb after leaving Kachhi Gadi of Chamkour. Guru Ji wrote this letter in Deena Kangad and send it to Aurangzeb.
In this letter, Guru Gobind Singh Ji reminds Aurangzeb how he and his henchmen had broken their oaths sworn upon the Qur’an. He also states that in spite of his several sufferings, he had won a moral victory over the Emperor who had broken all his vows. Despite sending a huge army to capture or kill the Guru Ji, the Mughal forces did not succeed in their mission.
In the 111 verses of this notice, Guru Gobind Singh Ji rebukes Aurangzeb for his weaknesses as a human being and for excesses as a leader. Guru Gobind Singh also confirms his confidence and his unflinching faith in the Almighty even after suffering extreme personal loss of his Father, Mother, and all four of his sons to Aurangzeb’s tyranny.
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भाई मतीदास जो कि भाई पिरागा के सुपुत्र थे। भाई पिरागा छठे पातशाह का सिक्ख, कडिय़ाला गाँव, जिला जेहलम, जो आज-कल पाकिस्तान में है, का रहने वाला था। भाई पिरागा के चार सुपुत्र थे – भाई मतीदास, सतीदास, जतीदास, सखीदास। भाई मतीदास जी को सतगुरु गुरु तेग बहादुर साहब जी ने अपना दीवान नियुक्त कर रखा था।
भाई मतीदास और सतीदास की कुर्बानी गुरू साहब जी के साथ दिल्ली में हुई। जब गुरू साहब जी लोहे के पिंजरे में कैद थे तो भाई मति दास जी को काजी ने कहा सिक्खी छोड़ कर मुसलमान हो जाओ, आपको बहुत सुख दिए जाएंगे, परंतु भाई जी ने सभी संसारिक सुख और लालच ठुकरा दिए और कहा, मैं सिक्खी नहीं छोड़ सकता चाहे मेरी जान भी चली जाये।
काजी ने फिर कहा गुरू साहब का साथ छोड़ दो। भाई साहब ने कहा गुरू साहब जी को छोड़ कर मैं जिंदा नहीं रह सकता। मरना तो है ही, क्यों न सिक्खी निभा कर ही मरूँ। सरकार ने काजी से आरे चीरने का फतवा जारी करवा दिया, जिस को भाई साहब ने हँस कर कबूल किया। जब जल्लाद आरे को तीखा करने लगे तो भाई साहब ने कहा कि आप अपने आरे को तीखा करो, मैं अपने मन को तीखा करूँगा।
जल्लादों ने पूछा कि हम तो रेती से आरे को तीखा करेंगे, तुम्हारे पास मन को तीखा करन का क्या साधन है? तो भाई साहब ने उत्तर दिया कि मेरे पास गुरू नानक का बक्शा जपजी साहब का पाठ है। जिस जपजी के रंग को मेरे गुरू तेग बहादुर साहब ने प्रसन्न हो कर चढ़ाना किया है। जल्लादों ने मतीदास जी को पूछा तुझे आरे के साथ आज चीरा जाना है, तुझे डर नहीं लग रहा? तुम्हारा मन नहीं काँप रहा? मतीदास जी कहने लगे, जिस सिक्ख के अंदर गुरू की वाणी का निवास हो उसे डर नहीं लगता, न मन काँपता है, मैं तो आज बहुत ख़ुश हूँ जो गुरू साहब जी के सामने मुझे पंथ के लिए शहादत प्राप्त हो रही है। जिंदगी की कोई ऐसी चीज नहीं है जिसका मैंने गुरू कृपा सदका स्वाद (आनंद) न प्राप्त किया हो। बस एक यह आरा रह गया था जिस के साथ मुझे चीर कर शहीद किया जाना है।
मतीदास जी को आखिरी इच्छा पूछने पर भाई साहब ने जल्लादों को कहा कि अंत समय मेरा मुख गुरू तेग बहादुर साहब जी के पिंजरे की तरफ हो, जिससे मैं गुरू साहब जी के दर्शन करते हुए दरगाह को जाऊँ। भाई साहब ने जपजी का पाठ शुरू किया, इसके साथ ही जल्लादों ने आरा चलाना शुरू कर दिया सच्चे लहु की धारा दूर -दूर तक बहने लगीं, ख़ून के परनाले छूट पड़े। देखने वाले लोग, आरा चलाने वाला जल्लाद, फतवा देने वाला काजी काँप उठे, यह देख दंग रह गए परन्तु भाई साहब जी को जरा भी घबराहट नहीं थी।
जैसे-जैसे आरा चल रहा था चेहरे पर जलाल बढ़ रहा था। देखने वालों के रौंगटे खड़े हो गए। इस तरह की शहादत उन्होंने पहले कभी नहीं थी देखी थी। अभी ‘असंख जपु’ वाली पौड़ी (पद) पर ही पहुँचे थे कि जल्लादों ने शरीर को चीर कर दो हिस्सों में बाँट दिया। भाई साहब की जल्लादों को हिदायत थी कि चीरा बिल्कुल सीधा हो, अगर आपकी गलती से चीर टेढा लग गया तो कहीं कोई यह न कहे कि भाई साहब आरे से डरता डोल गया था, जब कि मैं अडोल (अचल) खड़ा हूँ।
इस के बाद एक ओर आश्चर्यजनक बात हुई कि शरीर दे दो हिस्से होने के बाद भी जपजी साहब की आवाज बंद नहीं हुई, दो हिस्सों में से एक ही आवाज आती रही। जैसा कि एक हिस्सा बोलता है ‘अंतु न सिफती कहणि न अंतु।’ दूसरे हिस्से में से आवाज आती है ‘अंतु न करणै देणि न अंतु।’ इस तरह जपजी साहब जी का संपूर्ण पाठ समाप्त हुआ और भाई साहब शहीद हो गए। दुनिया के इतिहास में भाई साहब जी की शहादत बेमिसाल है।
अरोध अरध चिराइि सु डारा।। परयो पृथवी पर हवै दो फारा। दोनहुं तन ते जपु जी पढै। हेरत सब कर अचरज बढै ।46। (गुर प्रताप सूरज, रासि 12, अंंसू 54)
इस प्रकार भाई मतीदास जी का मन नाम के पक्के रंग में रंगा हुआ था। जैसे मजीठे का रंग कपड़े को उपयोग करने-फटने के बाद भी नहीं उतरता। इसी तरह शरीर को चीरने के बाद भी वह रंग नहीं उतरा।
सतगुरु नानक देव जी के समय बाबर ने ऐमनाबाद पर हमला किया, ऐमनाबाद के और आस-पास के लोगों का धन-माल लूटा, इज्जत लूटी, आम हत्याकांड का हुक्म दे कर ख़ून की नदियाँ बहा दीं। जो बचे, उन को बंदी बना लिया और बाबर ने सारे शहर को आग लगा कर जला देने का हुक्म जारी कर दिया। हर तरफ हाहाकार की आवाजें सुनाई देती थीं। सारा शहर धधकती आग के साथ ज्वालामुखी का रूप धारण कर चुका था।
गुरू नानक देव जी का एक सिक्ख, जिसका नाम इतिहास में भाई तारा लिखा है, वह इस कहर और जलती नगरी को देख, सह न सका। उस ने पानी की मच्छक (एक प्रकार का पानी ढोने का थैला) भरी, जहाँ-जहाँ घर जल रहे थे, वहाँ पहुंच, आग पर पानी डाल कर आग बुझाने के प्रयास करने लगा। यह घर न भाई तारा के थे, न भाई तारा के किसी रिश्तेदार या सज्जन मित्र के थे परन्तु भाई तारे की दृष्टि में सारा संसार ही उसे अपना लग रहा था। संसार की पीड़ा उसे अपनी पीड़ा लगती थी। दूसरों के घरों को लगी आग में उसे अपना घर जलता नजर आ रहा था। वह लगातार दौड़-दौड़ कर मच्छक भर लाता और जलती आग पर डाल देता।
भाई तारा जी ने अभी दो-तीन मच्छकें पानी जलती हुई आग पर डाला था कि बाबर के सिपाहियों ने भाई तारे को पकड़ लिया, मच्छक छीन ली और पूछा तूं यह क्या कर रहा है? भाई तारे ने उत्तर दिया, मैं घरों को लगी हुई आग बुझा रहा हूँ। सिपाहियों ने पूछा, क्या तूं आग बुझा लेगा? भाई तारे ने कहा, इतना तो मैं दावा नहीं कर सकता पर मैं खामोश रह कर इस जल रही आग को भी नहीं देख सकता, क्योंकि मेरे मालिक का मुझे हुक्म है कि जहाँ आग लगी हो, उसको बुझाना मेरा फर्ज है। मैं अपने मालिक का हुक्म बजा कर अपना फर्ज पूरा कर रहा हूँ। सिपाहियों ने कड़क कर कहा तुझे पता नहीं यह आग बाबर के हुक्म से लगाई गई है, इसको कोई बुझा नहीं सकता।
भाई तारे ने बेखौफ और बे-झिझक हो कर उत्तर दिया, ठीक है बाबर और उस के सिपाहियों का काम है आग लगाना, गुरू नानक और गुरू नानक के सिक्खों का फर्ज है लगी हुई आग को बुझाना। भाई तारे का जुर्रत भरा उत्तर सुन कर बाबर के सिपाही क्रोधित हो गए और भाई तारा जी को जलती आग में फैंक कर शहीद कर दिया। भाई तारा जी स्वयं तो आग में जल कर शहीद हो गए परन्तु अनेकों को दूसरों का दु:ख दूर करने और लगी हुई आग को बुझाने की प्रेरणा दे गए।
शिक्षा – हमें हर एक का दु:ख अपना दु:ख लगना चाहिए और हमें इसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh – Bhull Chukk Baksh Deni Ji –