Saakhi – Bhai Bidhi Chand Ki Bahaduri

Saakhi - Bhai Bidhi Chand Ki Bahaduri

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भाई बिधि चंद की बहादुरी

एक बार काबुल की संगत गुरू दर्शनों के लिए आई तो उनके साथ भाई करोड़ी मल भी आया जो एक अच्छी नस्ल के घोड़े गुलबाग और दिलबाग गुरू जी को भेंट करने के लिए लाया। जब यह सारी संगत लाहौर से गुजर रही थी तो लाहौर के हाकिम अनायतउला की नजर इन घोड़ों पर पड़ गई। अनायतउला ने घोड़े खरीदने चाहे, लेकिन करोड़ी मल ने यह कह कर ना कर दी कि वह घोड़े बेचने के लिए नहीं बल्कि अपने आराध्य गुरू हरगोबिंद साहिब को भेंट करने के लिए लाया है। हाकिम उसकी इस बात पर चिड़ गया और उसने दोनों घोड़े छीन लिए।

जब काबुल की संगत गुरू के पास पहुँची तो सभी संगतें कार भेंट रख माथा टेक कर बैठ गई परन्तु करोड़ी मल कोई भेंट आगे रखने की जगह उदास लहजे में बोला, ‘महाराज मैं आप जी को भेंट करने के लिए दो बढिय़ा नस्ल के घोड़े गुलबाग और दिलबाग लाया था, लेकिन रास्ते में ही लाहौर के हाकिम अनायत-उला ने छीन लिए हैं। मेरे पास अब आप जी को कार भेंट करने के लिए कुछ नहीं बचा। गुरू जी ने उसे दिलासा दिया और हँसते हुए बोले, ‘तुम्हारे घोड़े हमें पहुँच गए हैं, उनको अब हम अपने आप ले आऐंगे। तूं फिक्र ना कर, हम तुम पर बहुत प्रसन्न हैं, तुम्हारी कीमती भेंट प्राप्त करके ही छोड़ेंगे।Ó भाई करोड़ी मल को तसल्ली हो गई और वह खुश हो गया।

गुरू जी ने भाई बिधि चंद को अपने के पास बुलाया। उसे थापड़ा (पीठ पर हाथ मार कर शाबाशी देना) दिया और पाँच गुरुओं का नाम लेकर अरदास की और उसे लाहौर की तरफ रवाना कर दिया। बिधि चंद लाहौर पहुंच कर भाई जीवन के घर ठहर गया। अगले दिन उस एक घास खोतने वाले का भेष धारण कर लिया और बढिय़ा घास की एक गठरी खोद कर और साफ कर किले की बाहरी दीवार के पास जा बैठा। घोड़ों का दरोगा सैदे खान जब बाहर आया तो बढिय़ा घास देख कर वह बहुत प्रसन्न हुआ और घास भी सस्ते मूल्य पर मिल जाने से बहुत खुश हुआ। उसने घास खरीदने के बाद घसियारा के वेश धारण किए बिधि चंद को गठरी उठवाई और घोड़ों को खिलाने के लिए उसे शाही अस्तबल में ले गया। भाई बिधि चंद घोड़ों को घास डालते रहे और उनको पुचकार कर प्यार भी देते रहे।

अब भाई बिधि चंद रोज घास लाता और घोड़ों को डालता। इस नित्य की सेवा संभाल के चलते घोड़े भी भाई बिधि चंद को पहचानने लग गए और जब वह घास ले कर आता तो वह आगे से हिनहिना कर उसका स्वागत करते। सैदे खान ने भाई बिधि चंद से घोड़ों का इतना प्यार देख कर उसे घोड़ों की सेवा के लिए नौकर ही रख लिया। भाई साहब बड़े भोले भाले बन कर रहते थे परन्तु घोड़ों के साथ अपना स्नेह दिन-ब-दिन बढ़ाते गए। वे रोज रात को एक बड़ा पत्थर बाहर दरिया रावी में फैंक देते थे। दरिया रावी किले की दीवारों को छू कर बह रहा था। पत्थर फेंकने की आवाज को सुनकर जब चौकीदार देखते तो उनको कुछ न दिखता। आखिर उन्होंने समझा कि कोई जानवर किले की दीवार के साथ आ टकराता होगा, इसलिए वे इस ओर से निश्चिंत हो गए।

बिधि चंद अपनी तनख्वाह भी पहरेदारों को खिला-पिला छोड़ते थे। वे उस पर बहुत खुश थे। जब बिधि चंद को दूसरी तनख्वाह मिली तो उन पहरेदारें को इतना खिलाया पिलाया कि वे बेहोश हो गए। बिधि चंद ने उन सभी को एक कमरे में बंद कर दिया। फिर उनसे चाबियाँ लेकर घोड़े गुलबाग को खोला और पीछे हटा कर उससे इतने जोर की छलांग मरवायी कि वह बिधि चंद सहित किला की दिवार पार कर दरिया में कूद गया। भाई बिधि चंद ने घोड़ा गुरू को जा पेश किया। गुरू जी ने भरी संगत में भाई बिधि चंद की बहुत प्रशंसा की। दूसरा घोड़ा बिधि चंद नजूमी (खोई वस्तु के बारे में बताने वाले फकीर) बन कर ले आया। जब दूसरा घोड़ा भी ले कर वे गुरू जी के पास पहुँच गये तो गुरू जी ने उसे छाती के साथ लगाया और कहा- बिधि चंद छीना। गुरू का सीना। प्रेम भक्त लीना। कभी कमी ना।

शिक्षा – हमें भी भाई साहब की तरह गुरू हुक्म मानने के लिए सदा तैयार और तत्पर रहना चाहिए।

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