Saakhi – Guru Gobind Singh Ji or Nabi Kha Gani Kha

Saakhi - Guru Gobind Singh Ji or Nabi Kha Gani Kha

ਪੰਜਾਬੀ ਵਿੱਚ ਪੜ੍ਹੋ ਜੀ

गुरू गोबिन्द सिंह और गनी खां नबी खां

श्री गुरू गोबिन्द सिंह साहिब, चमकौर साहिब की जंग में अपने बड़े दो जिगर के टुकड़े, तीन प्यारे और पैंतीस सिंह शहीद करवा कर पाँच सिंहों के हुक्म के साथ ‘वाहो-वाहो गोबिन्द सिंह आपे गुरु चेला’ को स्वीकृत करते हुए 1705 में आठ पौष की रात चमकौर की कच्ची गढ़ी छोड़ दी।

गुरू साहब के साथ भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह और मान सिंह जी ने भी चमकौर की गढ़ी छोड़ी। गुरू साहिब ने इन सिंहों को कहा, ‘हम आपको माछीवाड़े के जंगलों में मिलेंगे, धु्रव तारे की सीध में चले आना।’

गुरु साहिब के जीवन के बारे में पढ़ें 

रात को शाही फौजें में सिंहों के जयकारे सुन कर भागदौड़ मच गई। घमासान का युद्ध हुआ। जिसमें भाई संगत सिंह सहित बाकी बचे सिंह शहादत प्राप्त कर गए। सुबह चमकौर साहिब में दशमेश पिता का पता न लगने पर शाही फौजें दस-दस हजार की टुकडिय़ों में आस-आसपास गुरू जी की खोज के लिए निकल पड़ीं।

उधर भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह और भाई मान सिंह जी ने गुरू जी के कहे अनुसार माछीवाड़े के जंगलों में पहुँच कर गुरू जी की खोज शुरू कर दी। सारे सिंह जंड (खेजड़ी का वृक्ष) के नीचे टिण्ड का सिरहाना ले कर आराम कर रहे गुरू जी को आ मिले।

गुरु गोबिंद सिंह जी साहिब के जीवन से जुड़ी कहानियां पढ़ें

दिलावर खान की फौज ने माछीवाड़ा साहब की घेराबंदी की हुई थी। दिल्ली से चलते समय दिलावर खान ने मन्नत माँगी थी कि, ‘अल्लाह ताला मेरी फौज को गुरू गोबिन्द सिंह जी के साथ मुकाबला न करना पड़े, इस बदले मैं 500 मोहरें उच्च के पीर को भेंट करूँगा।’

सुबह के समय पर गुरू जी को भाई गुलाबा और पंजाबा अपने घर चौबारा साहब ले आए। इनके घर से ही भाई नबी खां गनी खां दशमेश पिता को सिंहों के साथ अपने निजी घर ले आए। भाई नबी खां गनी खां गुरू जी के सच्चे सेवक थे। इनके घर गुरू साहब ने दो दिन और दो रात का विश्राम किया।

यहाँ से गुरू साहब आलमगीर की तरफ जाना चाहते थे परन्तु फौज ने चारों तरफ घेरा डाल रखा था। फौज के घेरे में से निकलने के लिए गुरू साहब ने नीले वस्त्र पहने और नबी खां, गनी खां सहित बाकी सिंह को भी नीले वस्त्र पहनने का हुकुम दिया।

(नील वस्त्र ले कपड़े पहरे तुर्क पठानी अमल किया) शाही फौज के घेरे में से निकलने की योजना उच्च के पीर बनकर बनाई गई थी, क्योंकि आज भी बहावलपुर (पाकिस्तान) के सभी सूफी फकीर केशाधारी हैं और नीले कपड़े पहनते हैं। सभी ने नील कपड़े डाल गुरू जी को पलंग पर बिठा कर चल पड़े।

चँवर साहब की सेवा भाई दया सिंह कर रहे थे और भाई नबी खां, गनी खां, भाई धर्म सिंह, भाई मान सिंह पलंग उठा कर चल रहे थे। यह अभी करीब दो किलोमीटर ही गए थे कि शाही फौजों ने रोक लिया। दिलावर खान ने पूछा, ‘यह कौन हैं ? कहाँ चले हैं ?’ भाई नबी खान बोले, हमारे उच्च के पीर हैं, पवित्र स्थानों की जियारत कर रहे हैं।

सुबह का वक्त था। दिलावर खान ने कहा, आपके उच्च के पीर शिनाख्त करवाए बगैर आगे नहीं जा सकते। यदि यह वास्तव में उच्च के पीर हैं तो हमारे के साथ खाना खाए। भाई नबी खां गनी खां बोले, पीर जी तो रोजे पर हैं। हम सभी खाने में शामिल हो जाएंगे।

दशमेश पिता जी को भाई दया सिंह ने कहा, आप तो रोजे का बहाने से बच गए, हमारा क्या बनेगा? गुरु जी ने अपने कमरकसे में से छोटी कृपाण (चाकू) भाई दया सिंह को दी और कहा कि इसको खाने में फेर लेना, खाना देग बन जायेगा। ‘तउ परसादी भ्रम का नाश छपे छंद लगे रंग’ वाहिगुरू कह कर ग्रहण कर लेना।

मुस्लिम खाना तैयार करवा कर सभी के आगे रखा गया तो भाई दया सिंह ने कृपान (चाकू) निकालकर खाने में फेरी। दिलावर खान ने पूछा यह क्या कर रहे हो तो भाई नबी खान बोले, जनरल साहब अभी मक्का मदीना से पैगाम आया है कि खाना खाने से पहले कृपान भेंट जरूर करो।

शिनाख्ती के लिए काजी नूर मोहम्मद (जो गुरू जी का मित्र थे) को नजदीक के गाँव नूरपुर से बुलाया गया। काजी नूर मुहम्मद ने आ कर दिलावर खान को कहा, शुक्र करो उच्च के पीर ने पलंग रोकने पर कोई बद-दुआ नहीं दी, यह पीरों के पीर हैं। दिलावर खान ने सिजदा कर माफी मांगी और गुरु साहिब को बाइज्जत आगे जाने के लिए कहा।

(घट-घट के अंतर की जानत भले-बुरे की पीर पछानत) सतगुरु ने कहा, ‘दिलावर खां तुमने तो 500 मोहरें उच्च के पीर को भेंट करने की मन्नत मांगी थी पूरी करो।’ दिलावर खां का विश्वास दृढ़ हो गया, झटपट 500 मोहरें और कीमती दुशाला मंगवा कर गुरू जी के चरणों में रख कर अपनी भूल के लिए माफी मांगी।

गुरू जी ने यह भेटें भाई नबी खां गनी खां को दे दी। देग और खाने में कृपान भेंट करने का रिवाज इसी स्थान (गुरुद्वारा कृपान भेंट साहिब) से चलन में आया जो कयामत तक चलता रहेगा। यहाँ गुरू जी ने जो पीर चश्मा प्रकट किया। भाई दया सिंह ने उस चश्में का जल गुरू जी को रोजा खोलने के लिए दिया। यह चश्मां अब कुएँ के रूप में आज भी यहाँ मौजूद है।

गनी खां और नबी खां का घर जहाँ गुरू जी 2 दिन और 2 रातों के लिए रुके थे वहां अब गुरुद्वारा गनी खां नबी खां सुशोभित है। गुरुद्वारा कृपान भेट साहिब गुरुद्वारा गनी खां नबी खां से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर लुधियाना जिले के माछीवाड़ा में स्थित है।

शिक्षा – हमें भी गुरू साहब की तरह वाहिगुरू का धन्यवाद करते हुए हर मुसीबत और विकट समय का डट कर मुकाबला करना चाहिए।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –

PLEASE VISIT OUR YOUTUBE CHANNEL & Follow DHANSIKHI INSTAGRAM FOR VIDEO SAAKHIS, GREETINGS, WHATSAPP STATUS, INSTA POSTS ETC.
| Gurbani Quotes | Gurbani and Sikhism Festivals Greetings | Punjabi Saakhis | Saakhis in Hindi | Sangrand Hukamnama with Meaning | Gurbani and Dharmik Ringtones | Video Saakhis |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.