Delhi Fateh Diwas : Sikh History

The Sikhs attacked the Red Fort on 11th March 1783 and hoisted the Nishan Sahib
The Sikhs attacked the Red Fort on 11th March 1783 and hoisted the Nishan Sahib.

ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਇਥੇ ਕਲਿੱਕ ਕਰੋ ਜੀ

लाल किले पर केसरी निशान साहिब फहराने का प्रतीक

दिल्ली फतह दिवस

यह साल 1783 का समय था जब सिक्ख कमाण्‍डर बाबा बघेल सिंह जी ने मुग़ल बादशाह शाह आलम-II से दिल्‍ली वापस जीत ली। 11 मार्च 1783 को सिक्ख फ़ौज घोड़ों, हाथियों और बहादुरी के साथ दिल्ली की तरफ बढ़ी और लाल किले पर कौम का केसरी निशान साहिब लहरा दिया तथा 9 महीने तक दिल्ली पर सिक्खों का राज रहा। सारी सिक्ख कौम की तरफ से इस दिन को फ़तह दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

बाबा बघेल सिंह जी का जन्म 1730 को गाँव झबाल कलाँ, अमृतसर में एक ढिल्लों जाट परिवार में हुआ था और उसके पुरखों ने 1580 के दशक में गुरू अरजन देव जी से सिक्खी धारण कर ली थी। बाबा बघेल सिंह जी ने पहले 8 जनवरी, 1774 को दिल्ली पर हमला किया और शाहदरा तक का इलाका अपने कब्ज़े में ले लिया। दूसरा हमला 17 जुलाई 1775 को किया गया, जिसमें सिक्खों ने वर्तमान समय के पहाड़गंज और जय सिंघपुरा के आस-पास के क्षेत्र को अपने कब्ज़े में कर लिया।

नयी धार्मिक रिंगटोन डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें

ज़्यादातर लड़ाई वर्तमान समय की नई दिल्ली वाली जगह पर ही हुई थी। हालाँकि स्पलाई की कमी ने सिक्खों को अस्‍थाई तौर पर अपनी फ़तह की तरफ बढ़ने से रोके रखा, लेकिन लाल किला फतह करना सिक्खों का अंतिम लक्ष्य था। 11 मार्च 1783 को सिक्ख लाल किले में दाख़िल हो गए और दीवान-ऐ-आम पर कब्ज़ा कर लिया जहाँ मुग़ल बादशाह शाह आलम-II बैठा था।

बादशाह शाह आलम-II ने सिक्खों के साथ संधि की पेशकश की और उनकी शर्तों को स्वीकार कर लिया, जिसमें सिक्ख ऐतिहासिक स्थानों पर गुरुद्वारा साहिबों का निर्माण भी शामिल था। गुरुद्वारा शीशगंज साहब, जहाँ गुरू तेग़ बहादुर जी को मुग़ल बादशाह औरंगजेब के आदेशों पर शहीद किया गया था और गुरुद्वारा रकाब गंज साहब जहाँ गुरू जी की शीश विहीन देह का अंतिम संस्कार किया गया था। इसके अलावा गुरुद्वारा बंगला साहब, गुरुद्वारा  बाला साहब, गुरुद्वारा मजनूं का टीला, गुरुद्वारा मोती बाग, गुरुद्वारा माता सुन्दरी और गुरुद्वारा बाबा बन्दा सिंह बहादुर की स्थापना का सेहरा भी बाबा बघेल सिंह के सिर बांधा जाता है।

बाबा जी द्वारा बनवाए गए गुरूद्वारों का इतिहास –

  • गुरू गोबिन्द सिंह जी की पत्नियाँ, माता सुन्दरी और माता साहब देवी जी की याद में तेलीवाड़ा में गुरुद्वारा क्योंकि कुछ समय के लिए यहाँ रहे थे।
  • गुरुद्वारा बंगला साहब जहाँ गुरू हरि क्रिशन जयपुर के महाराजा जय सिंह के बंगले में ठहरे थे।
  • यमुना किनारे चार मकबरे बनवाऐ गए थे जहाँ गुरू हरि क्रिशन, माता सुन्दरी, उनके द्वारा गोद लिए गए पुत्र साहिब सिंह तथा माता साहिब कौर का अंतिम संस्कार किया गया था। वहां एक गुरुद्वारा भी बनाया गया था।
  • गुरुद्वारा रकाबगंज जहाँ गुरू तेग़ बहादुर जी की सिर विहीन देह का लक्‍खी बनजारे द्वारा अंतिम संस्कार किया गया।
  • गुरुद्वारा शीशगंज जहाँ नौवें पातशाह गुरू तेग़ बहादुर जी का सिर कलम किया गया था।
  • मजनूं का टीला में एक गुरुद्वारा बनाया गया था जहाँ श्री गुरु नानक देव जी ठहरे थे।
  • सातवें गुरुद्वारा मोती बाग़ में बनाया गया था जहाँ गुरू गोबिन्द सिंह जी रहते थे।

इन सभी सात गुरुद्वारों का निर्माण नवंबर 1783 के अंत तक कर दिया गया था। बहुत से लोग नहीं जानते होंगे परन्तु आज भी दिल्ली बाबा बघेल सिंह जी की बहादुरी की गवाही भरती नज़र आती है। वह जगह जहाँ बाबा बघेल सिंह अपने 30000 सिंघ और फ़ौज के साथ दिल्ली में रुक गया था, वह अब तीस हज़ारी के नाम से जाना जाता है। यहाँ अब दिल्ली की छह जिला अदालतें लगती हैं जो कि दिल्ली हाईकोर्ट के अधीन काम करती हैं।

नए धार्मिक मोबाइल वालपेपर डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें

जब मुग़ल बादशाह शाह आलम -II को पता लग गया कि सिक्ख दिल्ली पर हमला करने की योजना बना रहे हैं, तो उसने लाल किले के सभी दरवाजे बंद करने का आदेश दे दिया, राशन तक पहुँच वाले रास्ते खासतौर पर बंद करवा दिए गए, ताकि सिक्ख भूख तथा राशन की कमी से परेशान होकर वापस लौट जाएँ। इस दौरान कुछ सिक्खों को अचानक एक दिन मिस्त्री मिल गया जिसे किले के अंदर की जानकारी थी, उसने सिक्खों को किले की दीवार के उस हिस्से के बारे में बताया जो अंदर से थोथी हो चूक थी परन्तु बाहरी स्थिति बरकरार थी। सिक्ख फौजें उस मिस्त्री को साथ ले कर उस जगह पर पहुँचे और लकड़ी के मोटे तनों से दीवार तोड़कर किले के अंदर दाख़िल हो गए। इस जगह को अब मोरी गेट के नाम के साथ जाना जाता है, जहाँ अब अंतर राज्‍ययी बस टर्मिनस (आईएसबीटी) बना हुआ है। लाल किला जीतने के बाद सिक्खों ने जहाँ मिठाईयों बांटी थी उस जगह को अब मिठाई वाले पुल के नाम के साथ जाना जाता है।

आज ज़रूरत है हमें अपने गौरवमयी इतिहास की खोज करने कि ताकि हम यह जान सकें कि हमारे पुरखे कितने बहादुर थे और मुश्किलों भरे समय में भी कैसे खुश रहते थे। आइये अपनी नयी पीढ़ी को इस और प्रेरित करें तथा अपने बच्चों को इतिहास और विरासत के साथ जोड़ें।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –

List of dates and events celebrated by Sikhs.

|  Gurpurab Dates 2021 | Sangrand Dates 2021 | Puranmashi Dates 2021 |
Masya Dates 2021 | Panchami Dates 2021 | Sikh Jantri 2021 |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.