Saakhi – Shaheed Bhai Bota Singh Or Bhai Garja Singh

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Saakhi - Shaheed Bhai Bota Singh Or Bhai Garja Singh

Saakhi – Shaheed Bhai Bota Singh Or Bhai Garja SinghSaakhi - Shaheed Bhai Bota Singh Or Bhai Garja Singh

ਇਹ ਸਾਖੀ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿੱਚ ਪੜੋ ਜੀ

शहीद भाई बोता सिंह जी और शहीद भाई गरजा सिंह जी

नादिर शाह के भागने के बाद जब जकरिया खान ने सिक्खों के सर्वनाश का अभियान चलाया तो उसने सभी अत्याचारों की सीमाएं पार कर दीं। जब पंजाब में कोई भी सिक्ख ढूंढने पर भी नहीं मिला तो उसने खुश होकर इस बात का ढिंढोरा पिटवा दिया कि हमनें सिक्ख सम्प्रदाय का विनाश कर दिया है। अब किसी को भी बागी दिखाई नहीं देंगे। इन दिनों लाहौर नगर के नजदीक गाँव भड़ाण के निवासी भाई बोता सिंह अपने मित्र भाई गरजा सिंह के साथ श्री दरबार साहब जी के सरोवर में स्नान करने की इच्छा से घर से दरबार साहिब की और निकल पड़े लेकिन सिक्ख विरोधी अभियान के चलते वह दोनों रात को यात्रा करते और दिन में किसी झाड़ी और वीरानें में आराम करके समय व्यतीत करते।

पहले उन्होंने श्री तरनतारन साहब जी के सरोवर में स्नान किया। फिर जब दिन ढलने के समय श्री अमृतसर साहब जी चलने के लिए वे दोनों जब सड़क किनारे उगी कंटीली झाडिय़ों की ओट से बाहर निकले तो उन्हें वर्दीधारी आदमियोंं ने देख लिया।

सिक्खों ने उनको देखकर कुछ डर सा महसूस किया। कि तभी वह पठान सिपाही बोले यह तो सिक्ख दिखाई देते हैं? फिर वह विचारने लगे कि यह सिक्ख हो नहीं सकते। यदि सिक्ख होते तो यह भयभीत हो ही नहीं सकते थे। वह सोचने लगे, क्या पता सिक्ख ही हो, यदि सिक्ख ही हुए तो हमारी जान खतरे में है, जल्दी यहाँ से खिसक चलें।

पर वह एक दूसरे से कहने लगे कि जकरिया खान ने तो घोषणा करवा दी है कि मैंने कोई सिक्ख रहने ही नहीं दिया तो यह सिक्ख कहाँ से आ गए? दोनों पठान सिपाही तो वहाँ से खिसक गए परन्तु उन की बातों के सच्चे व्यंग्य ने इन शूरवीरों हृदय में पीड़ा पैदा कर दी कि जकरिया खान ने सिक्ख खत्म कर दिए हैं और सिक्ख कभी भयभीत नहीं होते? इन दोनों योद्धाओं ने विचार किया कि यदि हम अपने आप को सिक्ख कहलाते हैं तो फिर भयभीत क्यों हो रहे हैं? यही समय है, हमें दिखाना चाहिए कि सिक्खों को कभी भी खत्म नहीं किया जा सकता है।

इसलिए हमें कुछ विशेष कार्य कर यह दिखाना है कि सिंह कभी भयभीत नहीं होते। बहुत सोच विचार के बाद उन्होंने जरनैली सड़क पर एक उचित स्थान ढूंढ लिया, यह था नूरदीन की सराय, जिसे इन्होंने अपना बसेरा बना लिया और वहां पास ही के पुल पर उन्होंने एक चुंगी नाका बना लिया, जिस पर वह दोनों मोटे सोटे (लठ्ठ) ले कर पहरा देने लगे और सभी मुसाफिरों से चुंगीकर (टैक्स) वसूल करने लगे।

उन्होंने घोषणा की कि यहाँ खालसे का राज स्थापित हो गया है, अत: बैलगाड़ी को एक आना और लादे हुए गधों का एक पैसा कर (टैक्स) देना लाजमी है। सभी लोग सिक्खों के डर के कारण चुपचाप कर देते और चले जाते, कोई भी व्यक्ति विवाद नहीं करता लेकिन आपस में चर्चा करते कि जकरिया खान झूठी घोषणाएं करवाता रहता है कि मैंने सभी सिक्ख विद्रोहीयों को मार दिया है। इस प्रकार यह दोनों सिक्ख लम्बे समय तक चुंगी रूप में कर वसूल करते रहे, परन्तु प्रशासन के की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं हुई। इन सिक्खों का मूल उद्देश्य तो सत्ताधारियों को चुनौती देना था कि आपकी घोषणाएं हमनें झूठी साबित कर दीं हैं, सिक्ख जीवित हैं और पूरे स्वाभिमान के साथ रहते हैं। एक दिन बोता सिंह के मन में बात आई कि हम तो गुरू चरणों में जा रहे थे पवित्र सरोवर में स्नान करने, परन्तु हम यहाँ कहाँ माया के जंजाल में फंस गए हैं।

हमने तो यह नाटक रचा था, प्रशासन की आँखें खोलने के लिए कि सिक्ख अलग प्रकार के योद्धा होते हैं, जो मौत को एक खेल समझते हैं, जिनको खत्म करना संभव ही नहीं, अत: उसने प्रशासन को झंकझोडऩे के लिए एक पत्र राज्यपाल जकरिया खान को लिखा। पत्र में जकरिया खान पर व्यंग्य करते हुए, बोता सिंह ने उसको एक औरत (स्त्री, महिला) बताते हुए भरजाई (भाभी) शब्द की तरफ से संबोधन किया –

चिट्ठी लिखतम सिंह बोता

हाथ में सोटा, रास्तें में खलोता

महसूल आना लगाये गड्डे नूं, पैसा लगाया खोता

जा कह देना भाभी खाने को ऐसा कहता है सिंह बोता

बोता सिंह जी ने यह पत्र लाहौर जा रहे एक राहगीर के हाथ जकरिया खान को भेज दिया। जब पत्र अपने सही स्थान पर पहुंचा तो राज्यपाल जकरिया खान क्रोध से तमतमा उठा परन्तु उसको अपनी बेबसी पर रोना आ रहा था कि उसके लाख प्रयासों और सख्ती के बावजूद भी सिक्खों के हौसले वैसे के वैसे बुलंद थे। अत: उसने राहगीर की तरफ से पूछा कि वहाँ तुमने वहां कितने सिक्ख देखे हैं। इस पर राही ने बताया – हजूर! वहाँ पर मैंने तो केवल दो सिक्खों को ही देखा है, जिनके पास शस्त्रों के नाम पर केवल सोटे (लट्ठ) हैं परन्तु जकरिया खान को उसकी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ, वह सोचने लगा कि केवल दो सिंह वह भी बिना हथियारों के इतनी बड़ी हकूमत को कैसे ललकार सकते हैं ? उसने जनरल जलालुद्दीन को आदेश दिया कि वह दो सौ शस्त्रधारी घुड़सवार फौजी ले कर तुरंत नूरदीन की सराय जाए, उन सिक्खों को हो सके तो जीवित पकड़ कर लाओ। बेचारा जकरिया खान और कर भी क्या सकता था।

उसको पता था कि यह सिक्ख लोग हैं, जो सवा लाख से अकेले लडऩे का अपने गुरू का दावा सही साबित करते हैं। अत: वे दस बीस सिपाहियों के काबू आने वाले नहीं हैं। जब जलालुद्दीन के नेतृत्व में 200 सैनिकों का यह दल नूरदीन की सराय पहुंचा तो वहाँ दोनों सिंह लडऩे-मरने के लिए तैयार मिले और उन्हें घोड़ों द्वारा उड़ायी गई धुल से ज्ञात हो गया था कि उन के द्वारा भेजा गया संदेश काम कर गया है। जैसे ही मुगल सैनिकों ने सिक्खों को घेरे में लेने की कोशिश की, तब सिक्खों ने ने बड़ी ऊँची आवाज में जयघोष (जयकारा) बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, लगाके शत्रु को ललकारना शुरू कर दिया और कहा- यदि आप भाई योद्धा हो तो हमारे के साथ एक-एक करके लड़ाई करके देख लो। इस पर जलालुद्दीन ने सिक्खों द्वारा दी गई चुनौती स्वीकार कर ली। उसने अपने बहादुर सिपाही आगे भेजे। सिंहों ने उन्हें अपने मोटे-मोटे लट्ठों से पलक झपकते ही चित्त कर दिया।

फिर दो-दो करके बारी बारी सिपाही सिंहों के साथ जूझने आने लगे परन्तु सिंह उन्हें पल भर में मौत के घाट उतार देते, दरअसल दोनों सिंह अपने गांव में लाठियों से लडऩे का दिन रात अभ्यास करते रहते थे, जो उस समय काम आया। अब सिंहों ने अपना दांव बदला और गरज कर कहा- अब एक-एक के मुकाबले दो-दो आ जाओ, जलालुद्दीन ने ऐसा ही किया, परन्तु सिंहों ने अपने पैंतरे बदल-बदल कर उन्हें धराशाही कर दिया।

जलालुद्दीन ने जब देखा की कि यह सिक्ख तो काबू में नहीं आ रहे और मेरे लगभग 20 जवान मारे जा चुके हैं तो वह बौखला गया और उसने इकठ्ठा सभी को सिंहों पर हल्ला बोलने का आदेश दे दिया-फिर क्या था, सिंह भी अपनी तय नीति के अनुसार एक दूसरे की पीठ से पीठ जोड़कर पीछे हो लिए और घमासान लड़ाई लडऩे लगे। इस प्रकार वह कई शाही सिपाहियों को हमेशा की नींद सुलाकर स्वयं भी शहादत प्राप्त कर गुरू चरणों में जा विराजे। इस घटना ने पंजाब निवासियों और जकरिया खान को यह ज्ञात करवा कर दिखा दिया कि सिक्खों को खत्म करने का विचार ही मूर्खतापूर्ण है।

जब जनरल जलालुद्दीन लाहौर जकरिया खान के पास पहुंचा तो उसने पूछा – ‘उन दोनों सिक्खों को पकड़ लाए हो? जवाब में जलालुद्दीन ने कहा- ‘हजूर ! उनकी अर्थियाँ ले कर आया हूं’। इस पर जकरिया खान ने पूछा – अपना कोई सिपाही तो नहीं मरा? जवाब में जलालुद्दीन ने कहा – हजूर ! क्षमा करो, बस 25 सिपाही मारे गए हैं और लगभग इतने ही जख्मी हैं।

शिक्षा – गुरू के सिक्ख कभी डर कर नहीं रहते और कौम के लिए अपनी जान की बाजी लगाने के लिए सदा तैयार रहते हैं।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chukk Baksh Deni Ji –

Saakhi – Guru Nanak Ji Ka Nawab Ko Nasihat Dena

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ਸਾਖੀ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿੱਚ ਪੜੋ ਜੀ

साखी – गुरु नानक जी का नवाब को नसीहत देना

सुल्तानपुर में मोदीखाने की नौकरी मिलने के बाद, एक दिन गुरु नानक देव जी वेंई नदी में स्नान करने के लिए गए और बाहर नहीं निकले। यह घटना 1497 ई. की है, तब गुरुजी की उम्र 27 साल की थी। भाई मरदाना ने काफी इंतजार किया और आखिर में थक हार कर घर की ओर रवाना हो गया तथा नवाब को नदी में में से बाहर नहीं निकलने की सूचना दी।

नवाब ने अपने कारिंदे गुरु जी की तलाश मेंं भेजे पर काफी खोजने के बाद भी उन्हें भी गुरुजी ना तो नदी में और ना ही आसपास ही कहीं मिले। शहर के सभी लोगों को अपने एक ईमानदार और समझदार मोदी के लापता होने का बहुत अफसोस हुआ। इस घटना के तीन दिन बाद किसी ने गुरुजी को कब्रिस्तान में बैठे देखा। गुरुजी के कब्रिस्तान में बैठे होने की सूचना जब नवाब दौलत खां के पास भी पहुंच गई। इस समय शहर काजी नवाब के पास आया हुआ था। नवाब ने उन्हें अपने साथ लिया और गुरुजी के पास कब्रिस्तान में पहुंच गये। यहां उन्होंने गुरुजी को यह कहते हुए सुना कि ‘यहां ना कोई हिन्दु है और ना कोई मुसलमान’।

यह सुन उन दोनों को बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने गुरुजी से कहा ‘हे नानक!, अगर आपको हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई फर्क नहीं लगता, सारे एक खुदा के पैदा किए हुए लगते हैं, अगर आपका ख्याल है कि खुदा के दरबार में इनके अच्छे बुरे कर्मों के आधार पर फैसला होता तो आप हमारे साथ खुदा के घर मस्जिद में, खुदा की भेजी नमाज पढऩे के लिए चलें।’ गुरुजी नवाब के कहने पर उनके साथ मस्जिद के अंदर चले गए।

गुरु के अलावा सभी नमाज पढऩे लगे। नमाज खत्म होने पर नवाब ने गुरुजी से पूछा, ‘आपने नमाज क्यों नहीं पढ़ी ? आप चुप क्यों खड़े रहे, जब हम नमाज पढ़ रहे थे ?’ गुरुजी ने उत्तर दिया, ‘नवाब साहब, मैं नमाज में किसका साथ देता ? आपका मन तो कंधार में घोड़े खरीदने के लिए गया हुआ था चाहे आप शारीरिक रूप से यहां मौजूद थे। नवाब ने कहा, ‘नानक, अगर मेरा मन नमाज में हाजिर नहीं था तो आपको काजी का साथ देना चाहिए था।’ गुरुजी ने कहा, ‘नवाब साहब, काजी का मन घर में नव प्रसूता घोड़ी की देखभाल कर रहा था।’ यह सुनकर काजी ने कहा, ‘नवाब साहब, नानक सच कह रहा है। मेरी घोड़ी का प्रसव आज सुबह ही हुआ है।

नमाज पढ़ते वक्त मेरे मन में यही ख्याल था कि कहीं घोड़ी का बच्चा खड्डे में ना गिर जाए और निकल ना सके।’ गुरु नानक ने कहा, ‘काजी साहब, खुदा के दर पर वहीं नमाज कबूल होती है जो मन एकाग्र कर की जाए। मन की एकाग्रता के बिना पढ़ी गयी नमाज खुद के साथ धोखा है और दूसरों के लिए दिखावा है।’

शिक्षा – हमें नितनेम करते वक्त और बाणी पढ़ते वक्त अपना मन एकाग्र रखना चाहिए।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chukk Baksh Deni Ji –

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साखी को हिंदी में पढ़ें 

ਸਾਖੀ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਜੀ ਦਾ ਨਵਾਬ ਨੂੰ ਨਸੀਹਤ ਦੇਣਾ

ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਵਿਖੇ ਮੋਦੀਖਾਨੇ ਦੀ ਕਾਰ ਮਿਲਣ ਪਿੱਛੋ, ਇੱਕ ਦਿਨ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਵੇਈਂ ਨਦੀ ਵਿਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਲਈ ਗਏ ਅਤੇ ਬਾਹਰ ਹੀ ਨਾ ਨਿਕਲੈ। ਇਹ ਘਟਨਾ 1497 ਈ. ਦੀ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਉਮਰ 27 ਸਾਲਾਂ ਦੀ ਸੀ। ਭਾਈ ਮਰਦਾਨਾ ਉਡੀਕ ਉਡੀਕ ਕੇ, ਥੱਕ ਕੇ ਘਰ ਨੂੰ ਚਲਾ ਆਇਆ ਅਤੇ ਨਵਾਬ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਨਦੀ ਵਿੱਚੋਂ ਬਾਹਰ ਨਾ ਨਿਕਲਣ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਦਿੱਤੀ।

ਨਵਾਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਆਦਮੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਭਾਲ ਲਈ ਭੇਜੇ ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨਦੀ ਵਿਚ ਜਾਂ ਬਾਹਰ ਆਸੇ ਪਾਸੇ ਕਿਧਰੇ ਨਾ ਮਿਲੇ। ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਿਆਣੇ ਅਤੇ ਈਮਾਨਦਾਰ ਮੋਦੀ ਦੇ ਲਾਪਤਾ ਹੋਣ ਦਾ ਬਹੁਤ ਅਫ਼ਸੋਸ ਹੋਇਆ। ਇਸ ਘਟਨਾ ਤੋਂ ਤੀਜੇ ਦਿਨ ਕਿਸੇ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਕਬਰਿਸਤਾਨ ਵਿਚ ਬੈਠੇ ਦੇਖਿਆ। ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਕਬਰਿਸਤਾਨ ਵਿਚ ਬੈਠੇ ਹੋਣ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਨਵਾਬ ਦੌਲਤ ਖ਼ਾਨ ਪਾਸ ਵੀ ਪੁੱਜ ਗਈ। ਉਸ ਸਮੇਂ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਵੱਡਾ ਕਾਜ਼ੀ, ਨਵਾਬ ਪਾਸ ਹੀ ਖੜਾ ਸੀ। ਨਵਾਬ ਨੇ ਉਸਨੂੰ ਨਾਲ ਲਿਆ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਪਾਸ ਕਬਰਿਸਤਾਨ ਵਿਚ ਪੁੱਜ ਗਿਆ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਆਪਣੇ ਕੰਨੀਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਸੁਣਿਆ, “ਏਥੇ ਨਾ ਕੋਈ ਹਿੰਦੂ ਹੈ ਅਤੇ ਨਾ ਮੁਸਲਮਾਨ” ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਹੈਰਾਨੀ ਹੋਈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ, “ਹੇ ਨਾਨਕ, ਜੋ ਤੈਨੂੰ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਵਿਚ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਲਗਦਾ, ਸਾਰੇ ਇੱਕ ਖ਼ੁਦਾ ਦੇ ਪੈਦਾ ਕੀਤੇ ਲਗਦੇ ਹਨ, ਜੇ ਤੇਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਹੈ ਕਿ ਖ਼ੁਦਾ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਚੰਗੇ ਬੁਰੇ ਕਰਮ ਪਰਖ ਕੇ ਫੈਸਲੇ ਹੋਣਗੇ ਤਾਂ ਤੂੰ ਸਾਡੇ ਨਾਲ ਖ਼ੁਦਾ ਦੇ ਘਰ ਮਸੀਤ ਵਿਚ, ਖ਼ੁਦਾ ਦੀ ਭੇਜੀ ਨਮਾਜ਼ ਪੜਨ ਲਈ ਚੱਲ।”

ਗੁਰੂ ਜੀ ਨਵਾਬ ਦੇ ਕਹਿਣ ਉੱਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਮਸੀਤ ਅੰਦਰ ਚਲੇ ਗਏ। ਗੁਰੂ ਜੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਸਾਰੇ ਨਮਾਜ਼ੀ ਨਮਾਜ਼ ਪੜ੍ਹਨ ਲੱਗੇ। ਨਮਾਜ਼ ਦੇ ਖ਼ਤਮ ਹੋਣ ਤੇ ਨਵਾਬ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਪਾਸੋਂ ਪੁੱਛਿਆ, “ਤੁਸੀਂ ਨਮਾਜ਼ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਪੜੀ ? ਤੁਸੀਂ ਚੁੱਪ ਕਰ ਕੇ ਕਿਉਂ ਖੜੇ ਰਹੇ, ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਨਮਾਜ਼ ਪੜ੍ਹ ਰਹੇ ਸੀ ?” ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉੱਤਰ ਦਿੱਤਾ, “ਨਵਾਬ ਜੀ, ਮੈਂ ਨਮਾਜ਼ ਵਿਚ ਕਿਸ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੰਦਾ ? ਆਪ ਦਾ ਮਨ ਤਾਂ ਕੰਧਾਰ ਵਿਚ ਘੋੜੇ ਖ਼ਰੀਦਣ ਗਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ਭਾਵੇਂ ਸਰੀਰ ਏਥੇ ਸੀ। ਨਵਾਬ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਨਾਨਕ, ਜੇ ਮੇਰਾ ਮਨ ਨਮਾਜ਼ ਵਿਚ ਹਾਜ਼ਰ ਨਹੀਂ ਸੀ ਤਾਂ ਤੁਸੀਂ ਕਾਜ਼ੀ ਦਾ ਸਾਥ ਦੇਣਾ ਸੀ। ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਨਵਾਬ ਸਾਹਿਬ, ਕਾਜ਼ੀ ਦਾ ਮਨ ਘਰ ਵਿਚ ਨਵੀਂ ਸੂਈ ਘੋੜੀ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਕਾਜ਼ੀ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਨਵਾਬ ਸਾਹਿਬ, ਨਾਨਕ ਸੱਚ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ।ਮੇਰੀ ਘੋੜੀ ਅੱਜ ਸਵੇਰੇ ਸੂਈ ਸੀ।

ਨਮਾਜ਼ ਕਰਦੇ ਕਰਦੇ ਮੇਰੇ ਮਨ ਵਿਚ ਆਇਆ ਕਿ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਾ ਹੋਵੇ ਕਿ ਵਛੇਰਾ ਟੋਏ ਵਿਚ ਡਿੱਗ ਪਵੇ ਅਤੇ ਨਿਕਲ ਨਾ ਸਕੇ।” ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਕਾਜ਼ੀ ਸਾਹਿਬ, ਖ਼ੁਦਾ ਦੇ ਦਰ ਉੱਪਰ ਉਹ ਨਮਾਜ਼ ਪ੍ਰਵਾਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਮਨ ਤਨ ਇਕਾਗਰ ਕਰ ਕੇ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ। ਮਨ ਦੀ ਇਕਾਗਰਤਾ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਪੜੀ ਨਮਾਜ਼ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨਾਲ ਧੋਖਾ ਹੈ ਅਤੇ ਦੂਜਿਆਂ ਲਈ ਦਿਖਾਵਾ ਹੈ।”

ਸਿੱਖਿਆ – ਸਾਨੂੰ ਨਿਤਨੇਮ ਕਰਣ ਅਤੇ ਬਾਣੀ ਪਣਨ ਵੇਲੇ ਅਪਣਾ ਮਨ ਇਕਾਗਰ ਰਖਣਾ ਚਾਹਿਦਾ ਹੈ।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chukk Baksh Deni Ji –

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