Sikh History : Saka Panja Sahib
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सिक्ख इतिहास : साका पंजा साहिब
ब्रिटिश राज के दौरान, 8 अगस्त, 1922 को गुरुद्वारा गुरू का बाग, आनंदपुर साहब में अनाथली (खाली पड़ी) जमीन से गुरू के लंगर के लिए ईंधन के लिए लकडिय़ां काटने के दोष में पुलिस ने पाँच सिक्खों को गिरफ्तार कर लिया। ब्रिटिश राज कानून के अधीन, हर एक को पचास रुपए का जुर्माना और हिन्दू महंत के कब्जे वाली धरती से लकड़ी चोरी करने के दोष में छह महीने कैद की सजा सुनाई गई थी।
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महंत लोगों ने सिक्ख गुरुद्वारों का प्रबंध तब से ही अपने हाथ में कर रखा था जब सिक्ख मुगल राज के समय पर जंगलों में दिन गुजारते थे। शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने सरकार के इस फैसले विरुद्ध आंदोलन शुरू कर दिया क्योंकि यह जमीन गुरूद्वारे की थी और सिक्खों को लंगर के लिए यहाँ से लकडिय़ां काटने का पूरा हक था। पुलिस ने सिक्ख प्रर्दशनकारियों को डंडो के जोर से दबाने की भी पूरी कोशिश की परन्तु कोई खास सफलता नहीं मिली।
एक दिन कपूरथला जिले के सूबेदार अमर सिंह धालीवाल के नेतृत्व में सिक्खों के एक जत्थे ने गिरफ्तारी दी जिनको मजिस्ट्रेट असलम खान ने डेढ़ साल की कैद और प्रत्येक को सौ रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। एक रेलगाडी इन सिक्ख कैदियों को अटक ले जाने के लिए 29 अक्टूबर 1922 की रात अमृतसर से रवाना हुई। यह रेल गाड़ी 30 अक्टूबर को रावलपिंडी में रेलवे स्टाफ के बदलाव और कोयला-पानी लेने के लिए रुकी।
उस दिन, गुरुद्वारा पंजा साहब की सिक्ख संगत ने कैदी सिंहों के इस जत्थे को रेल गाड़ी में लंगर-पानी छकाने का फैसला किया। लंगर तैयार किया गया और कैदियों को खाना-पानी देने की योजना बनाई गई। 31 अक्टूबर की सुबह को, सिक्ख संगत लंगर ले पंजा साहिब रेलवे स्टेशन पर पहुँच गई और ट्रेन आने का इंतजार करने लगी।
पंजा साहिब रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर ने सिक्खों को बताया कि यह रेल गाड़ी इस स्टेशन पर नहीं रुकेगी इस लिए आपकी लंगर छकाने की इच्छा पूरी नहीं हो सकेगी। तब भाई करम सिंह जी ने उत्तर दिया, बाबा नानक ने एक हाथ से पहाड़ रोक दिया था। क्या उसके सिक्ख एक रेलगाड़ी नहीं रोक सकते?
दस बजे के लगभग ट्रेन आती देख, भाई करम सिंह जी रेलवे लाईन पर लेट गए। यह देख भाई प्रताप सिंह जी, भाई गंगा सिंह, भाई चरन सिंह, भाई नेहाल सिंह, भाई तारा सिंह, भाई फकीर सिंह, भाई कल्याण सिंह तथा और भी बहुत सारे सिंह और सिहंनीआं उनके साथ जा मिले।
रेलगाड़ी के ड्राईवर ने रेलवे लाईन पर बैठे सिक्खों को देख कर बार-बार सीटी बजाई परन्तु सिक्ख इस तरह बैठे रहे जैसे उन्हें कोई आवाज सुनाई ही न देती हो। सभी तरफ सिर्फ वाहिगुरू वाहिगुरू का जाप ही सुनाई दे रहा था। रेलगाड़ी ने भाई करम सिंह जी और भाई प्रताप सिंह जी की हड्डियों के टुकड़े कर दिए, अनेकों सिक्ख जख्मी हो गए और रेल रुक गई।
भाई प्रताप सिंह जी ने संगत को कहा कि आप हमारी चिंता न करो पहले जल्दी जा कर ट्रेन में बैठे भूखे सिक्खों को लंगर छकाओ, हमारी देखभाल बाद में कर लेना। रेल लगभग डेढ़ घंटा यहां रुकी रही। पंजा साहब जी की संगत ने पहले बड़े प्यार से रेल में सवार सिक्खों को परशादा छकाया और फिर घायल सिंक्खों की देखभाल की।
तीस साल के भाई करम सिंह जी, जो केशगढ़ साहिब जी के महंत भाई भगवान दास के पुत्र थे, इस घटना के कुछ घंटों बाद शहादत पा गए। इससे अगले दिन पच्चीस साला भाई प्रताप सिंह जी, जो गुजरांवाला अकाल गढ़ के थानेदार भाई स्वरूप सिंह जी के पुत्र थे, भी शहादत जाम पी गए।
जब रेल के चालक को यह पूछा गया कि उसने रेल क्यों रोकी, तो उसने कहा कि जब रेल, लाईन पर सो रहे सिक्खों से टकराई तो उसके हाथ से वैक्यूम वाला लीवर छूट गया और रेल रुक गई, उसने कोई ब्रेक नहीं लगाई थी।
शिक्षा – हमें भी आज जरूरत है इन सिक्खों की बहादुरी और बलिदान से शिक्षा लेने की। देखो इन सिक्खों को जिनके अंदर न सिर्फ अपने गुरू के लिए बल्कि अपने गुरू के सिक्खों के लिए भी कितना प्यार था। हमें भी हमारे के बीच रह रहे हमारे गरीब और जरूरतमंद भाइयों की हर संभव मदद करनी चाहिए फिर चाहे वह अन्न की हो या फिर धन की। क्योंकि गुरू साहब ने गरीब के मुँह को गुरू की गोलक कह कर सम्मान दिया है।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chukk Baksh Deni Ji –
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