Saakhi – Sikh Ki Shanka Aur Guru Kalgidhar Ka Jawab

Saakhi - Sikh Ki Shanka Aur Guru Kalgidhar Ka Jawab

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सिक्ख की शंका और गुरु कलगीधर का जवाब

एक दिन एक सिक्ख ने सतगुरु कलगीधर जी के चरणों में अपना शंका दूर करने के लिए बेनती कर पूछा पातशाह ! आप जी के दर्शन तो सभी सिक्ख करते हैं, वचन भी सभी सुनते हैं, आपको प्रणाम भी सभी करते हैं, फिर इतना फर्क क्यों ? कोई ईष्र्या द्वैष से मुक्त समदृष्टि वाला बन जाता है। कुछ का ईष्र्या और वैर विरोध पीछा नहीं छोड़ते और कईयों पर आपके दर्शन कर वचन सुन कर भी कोई असर नहीं होता, क्या कारण है ?

कलगीधर जी ने सिक्ख को हुक्म किया, गुरसिक्खा ! यह गड़वा (पानी रखने का बड़ा लोटा) रखा है, इसको पानी से भर कर लाओ। गुरसिक्ख गड़वा पानी से भर ले आया। सतगुरु जी ने अगला हुक्म करते हुए सिक्ख को कहा, कि एक पत्थर का टुकड़ा और एक मिट्टी का ढेला (मिट्टी का जमा हुआ टुकड़ा) लेकर आओ। गुरसिक्ख ने पत्थर का टुकड़ा और मिट्टी की ढेली लाकर सतगुरु जी को हाजिर कर दी।

सतगुरु जी ने अपने पास रखे पताशों में से एक पताशा भी गुरसिक्ख को देते हुए हुक्म किया, यह पताशा, मिट्टी का ढेला और पत्थर का टुकड़ा पानी के गड़वे में डाल दो। गुरुसिक्ख ने गुरु आदेश मानते हुए तीनों चीजों को पानी के गड़वे में डाल दिया। कुछ समय वचन विलास (बातचीत/वार्तालाप) करने के बाद सतगुरु जी ने उसी गुरसिक्ख को हुक्म किया कि इस गड़वे में से पताशा, मिट्टी की ढेला और पत्थर का टुकड़ा निकालो। पताशा जल कर रूप बन गया, मिट्टी की ढेली गारा बन गई, पत्थर का टुकड़ा वैसे का वैसा कोरा ही निकला।

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सतगुरु जी ने वचन किया भाई गुरुसिक्खो ! सच्चे सिक्ख प्रेम सहित गुरु की बाणी पढ़, नाम जप, निष्काम सेवा भक्ति करके गुरु को परमेश्वर का रूप जान कर गुरु वचनों की कमाई कर आपा भाव (अपना अहंकार और हस्ती को मिटा कर) मिटा कर परमात्मा का रूप बन जाते हैं जैसे पताशा पानी में गिरने के बाद अपना आकार और हस्ती खत्म करके पानी का रूप बन गया, पानी और पताशा एक रूप हो गये हैं।

दूसरे वे सिक्ख हैं जो निष्कामता सहित नहीं बल्कि मन में कोई कामना रख कर, बाणी भी पढ़ते हैं प्रेम सहित नाम भी जपते हैं, प्यार सहित सेवा भी करते हैं और गुरु हुक्म भी मानते हैं। वे परमात्मा से मिल तो जाते हैं पर परमात्मा के साथ अभेद नहीं होते, वे मिले हुए भी होते हैं और अपना न्यारापन (अलग हस्ती) भी बनाए रखते हैं। जैसे मिट्टी की ढेली पानी में घुल भी गई पर उसकी अलग हस्ती गारे (कीचड़) के रूप में कामम भी है। ऐसे सिक्खों को परमात्मा में अभेद होने के लिए, अपनी हस्ती और कामना खत्म करने के लिए दुबारा जन्म धारण करके, निष्काम भक्ति करनी पड़ती है। जब तक उनका न्यारापन और दुनियां से पूर्ण लगाव नहीं खत्म होता उन्हें प्रभु स्वरूप में अभेदता प्राप्त नहीं होती।

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तीसरे वे हैं जो केवल लोक दिखावे के लिए, वाह वाह कमाने के लिए बाणी भी पढ़ते हैं और लोक दिखावे के लिए सेवा भी करते हैं पर गुरु वचनों के अनुसार अपना जीवन नहीं बनाते और ना ही वे कामना रहित ही होते हैं। ऐसे दिखावे वाले सिक्ख पत्थर की तरह ऊपर से गीले दिखाई देते हैं पर अंदर से नाम बाणी के रस से कोरे होते हैं। वे अपने रहित (गुरु मर्यादा) द्वारा लोक दिखावा तो बहुत करते हैं पर करनी (असली कर्मों) से थोथे होने के कारण, वे सूखे पत्थर जैसे जीवन व्यतीत करते हुए अवगुणों का जीवन भोगते हैं।

संसार में गुरुसिक्खी की दात (बख्शीश) सब से अमूल्य है। जिस जिज्ञासु को सतगुरु जी गुरसिक्खी की दात प्रदान कर देते हैं। वे सब से बड़े भागों वाला बन जाता है। गुरु ग्रंथ साहिब जी की बाणी में श्री गुरु रामदास जी का फुरमान है – सभ दू वडे भाग गुरसिखा के जो गुर चरणी सिख पड़तिआ ।। म: ४, अंग ६४९

शिक्षा – गुरु चरणों में कुछ समय बैठ एकाग्र चित्त हो बार-बार गुरुसिक्खी की दात (दक्षिणा) प्राप्त करने के लिए कलगीधर जी के चरणों में निवेदन करें और साथी ही यह भी बेनती करें कि दाता! गुरुसिक्खी की दात पताशे जैसी प्रदान कीजिए। मिट्टी की ढेली और पत्थर, दिखावे वाली और साकाम सिक्खी के धारक हम ना बनें। क्योंकि पत्थर प्रवृत्ति और मिट्टी की ढेली प्रवृत्ति का धारक गुरु के पास बैठा वचन सुनता हुआ भी गुरु मेहर से खाली रह जाता है।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –

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