Saakhi – Shaheed Bhai Sangat Singh Or Chamkour Ki Garhi

Saakhi - Shaheed Bhai Sangat Singh Or Chamkour Ki Garhi
Saakhi – Shaheed Bhai Sangat Singh Or Chamkour Ki Garhi

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Saakhi – Shaheed Bhai Sangat Singh Or Chamkour Ki Garhi

शहीद भाई संगत सिंह जी और चमकौर की गढ़ी

गुरू साहब जी अनन्दगढ़ का किला छोडऩे के बाद चमकौर साहब पहुँचे। दुश्मन सेना भी उनके पीछे आ पहुंची। चारों तरफ लाखों की फौज ने घेरा डाल लिया। चमकौर में बहुत भारी जंग हुई जिसमें बहुत सारे सिंह शहादत का जाम पी गए। बाकी बचे 11 सिंहों ने आपस में सलाह कर यह संकल्प लिया कि गुरू साहब जी यहाँ से सुरक्षित निकल जाएँ, क्योंकि वे जानते थे कि बुरे वक्त में सिक्ख कौम को गुरू साहब जी के नेतृत्व की बहुत आवश्यकता है।

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इसलिए सिंघों ने पाँच प्यारे चुन कर गुरू साहब जी को चमकौर की गढ़ी छोड़ जाने का आदेश कर दिया। गुरू साहब जी ने भी खालसे को गुरू रूप जान कर गढ़ी छोड़ जाने का हुक्म स्वीकार कर लिया और अपनी जिगा कलगी और पोशाक बाबा संगत सिंह के सीस पर सजा कर खालसे को गुरुता बख्श दी। बाबा संगत सिंह की शक्ल-सूरत गुरू साहब जी से काफी मिलती थी।

मुगलों ने दोबारा चमकौर की गढ़ी पर हमला किया क्योंकि बाबा जी के पहनी हुई गुरू साहब वाली पोशाक मुगलों को गुरू साहब का बार-बार भ्रम डालती थी। बाबा संगत सिंह की अगुवाई में सिंहों ने बहुत बहादुरी और दिलेरी के साथ शत्रु का मुकाबला किया। बाबा संगत सिंह ने गुरू साहब जी द्वारा बख्शीश किये गये तीरों से दुश्मनों का नाश किया। बाबा जी जख्मी होने के के बावजूद भी अंत समय तक ‘बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के जयकारे गजाते हुए शहादत प्राप्त कर सदा के लिए गुरू -चरणों में जा बिराजे।

शहीद बाबा संगत सिंह जी का जन्म पटना साहब में दशम पिता साहब श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी से चार महीने बाद 25 अप्रैल 1667 ई. (1723 विक्रम सम्वत 16 फाल्गुन) को भाई रणीए जी के घर बीबी अमरो जी की कोख से हुआ। बाबा संगत सिंह का प्रारंभिक जीवन पटना शहर में सिक्खों के दसवें गुरू गोबिंद सिंघ जी के साथ हँस-खेल कर और बाल-लीला के कौतुक देखते गुजरा।

सिक्खों के दसवें गुरू गोबिंद सिंघ जी पिता जी के साथ रह कर भाई संगते ने शस्त्र विद्या, निशानेबाजी, नेजेबाजी और घुड़सवारी में विशेष महारत हासिल की। 30 मार्च 1699 को जात-पात की भावना को मूल रूप से खत्म कर सिक्खों के दसवें गुरू गोबिंद सिंग जी पिता जी ने संगतें को खण्डे-बाटे का अमृत छकाया तो भाई संगत सिंह और उसके साथियों, भाई मदन सिंह, भाई काठा सिंह, भाई राम सिंह ने कलगीधर पिता जी से अमृतपान किया और बाद में गुरू साहब जी ने भाई संगत सिंह को गुरू नानक पातशाह की सिक्खी का प्रचार करने के लिए मालवा क्षेत्र में सिक्खी का प्रचारक नियुक्त किया।

चमकौर की जंग से पहले भाई संगत सिंह ने बस्सी कलाँ से साहिबजादा अजीत सिंह के साथ ब्राह्मणी छुड़ा कर लाने, भंगानी की जंग, अगंमपुरे की जंग, सिरसा की जंग में अपनी बहादुरी के जौहर दिखाऐ थे। धन हैं गुरू के प्यारे सिक्ख धन हैं।

शिक्षा – बुरे वक्त में भी गुरू का पल्ला नहीं छोडऩा चाहिए। धर्म की रक्षा और ज़ुल्म के मुकाबले के लिए सदा तैयार व तत्पर रहना चाहिए।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –

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