Saakhi – Satta Or Balwand Ka Ahankaar
सत्ता और बलवंड का अहंकार
सत्ता और बलवंड दोनों पिता पुत्र गुरु घर के कीरतनीए थे। एक बार सत्ता ने गुरू अरजन देव जी के पास विनती की, “मेरी लड़की की शादी है, इसलिए आप मेरी कुछ मदद कीजिये।” गुरू जी ने कहा, “आज के कीर्तन का जो चढ़ावा आऐगा वह सारा आपको दे दिया जायेगा?” कीर्तन की समाप्ति के बाद जो चढ़ावा आया, सारा उनको दे दिया गया परन्तु वह सारी माया ले कर भी खुश नहीं हुए क्योंकि उस दिन चढ़ावा आम दिनों की अपेक्षा काफ़ी कम था।
गुरू जी के भाई पिरथी चंद को जब इस घटना का पता चला तो उसने सत्ता और बलवंड को बुला कर कहा, “आप भोले हो, गुरू अरजन देव ने संगत को चढ़ावा देने से रोक दिया था क्योंकि उस दिन का सारा चढ़ावा तुमको देना किया था। तुम तो जानते ही हो कि सारी संगत सिर्फ़ तुम्हारा कीर्तन सुनने आती है। अगर तुम कीर्तन करना बंद कर दो तो संगत उनके पास जाना बंद हो जायेगी। वह तो तुम्हारे कीर्तन के आसरे ही संगत से चढ़ावा लेते हैं।
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सत्ता और बलवंड को यह समझ नहीं आई कि पिरथी चंद तो गुरू अरजन देव जी का धुर विरोधी था। वह कैसे उनको भलाई की सलाह दे सकता थी। वह दोनों पिरथी चंद की बातों में आ गए और उसके कहने पर दूसरी सुबह गुरू घर कीर्तन करने नहीं गए। गुरू अरजन देव जी ने उनको घर से बुलाने के लिए सिक्ख भी भेजे। मगर उन दोनों ने आने से मना कर दिया और गुरू घर की शान में गलत बोल बोले। जब गुरू जी को इस बारे पता लगा तो गुरू जी ने कहा, “वे फिट्टे गए हैं। उनको मेरे सामने ना लाना। जो सिक्ख उनकी माफ़ी की सिफारश लेकर हमारे पास आयेगा, हम उसका मुँह काला कर, गधे पर बिठा कर शहर में जुलूस निकालेंगे।” उसके बाद गुरू अरजन देव जी ने संगत को साथ लेकर आप सरन्दा उठा कीर्तन करना शुरू कर दिया और उस दिन से ही सभी सिक्खों को कीर्तन की रहमत बक्श दी।
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उधर कुछ दिनों के अंदर ही सत्ता और बलवंड के शरीर फोड़ों (कोढ़) से भर गए। शरीर में से बदबू आने लगी, उनको कोई अपने नज़दीक नहीं आने देता। अपनी तकलीफ़ से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने लाहौर जा कर भाई लद्धे के पास पुकार की कि वह गुरू अरजन देव जी से उनको माफ़ करवा दे। भाई लद्धा, गुरू जी की रखी शर्त अनुसार अपना मुँह काला कर, गधा पर सवार हो कर, आगे ढोल बजाने वाले को लगा कर, गुरु घर से फिटकारे / दुत्कारे हुए सत्ता और बलवंड को साथ ले कर गुरू जी के पास उपस्थित हो गया। गुरू जी भाई लद्धे की इस करनी पर बड़े खुश हुए। भाई लद्धे की विनती स्वीकृत कर गुरू जी ने वचन किये, “इनको गुरू घर से माफ़ी मिल सकती है, अगर यह गुरू घर की उसी मुँह के साथ प्रशंसा करें, जिससे इन्होनें निंदा की थी।” उन दोनों ने गुरू के वचन मान कर गुरू घर की प्रशन्सा में वार उच्चारण की, जिसके साथ उनके शरीर का रोग दूर हो गया और उनको समझ आ गई कि संतों की निंदा भली नहीं। गुरू जी ने भी सत्ता और बलवंड की वार को गुरू ग्रंथ साहब में जगह दे कर धुर की बाणी बना दिया।
शिक्षा: गुरू जी के हुक्म की पालना करने से सभी दु:ख दूर हो जाते हैं और पालना नहीं करने पर दुःख सहना पड़ता है। गुरू की कृपा हो जाये तो सिक्ख का नाम सदा के लिए अमर हो जाता है।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
— Bhull Chukk Baksh Deni Ji —