Mata Jamna Devi Ki Shardha
माता जमना देवी की श्रद्धा
सन् 1671 ईस्वी में साहिबजादा बाल गोबिंद राय जी, पिता गुरु तेग बहादुर जी का संदेश प्राप्त होने पर माता गुजरी जी के साथ पटना साहिब की धरती से आनंदपुर साहिब के लिए रवाना हुए। पटना साहिब की संगतों का साहिबजादा बाल गोबिंद राय जी के साथ अथाह प्यार था। उन्हें आनंदपुर भेजने के लिए किसी का भी दिल नहीं कर रहा था और सबकी आँखों में आंसू थे। संगते बाल गोबिंद राय को विदायगी देने के लिए पटना शहर से तकरीबन 13 किलोमीटर दूर गांव दानापुर तक साथ आयी। यहां पहुंचने तक शाम ढल गई और गोबिंद राय जी, माता गुजरी जी और पटना शहर से आई संगतों ने यहीं पर रात्रि विश्राम किया। दानापुर गांव मेंं एक बूढ़ी महिला माता जमना देवी रहती थी। वह गुरु घर पर अथाह श्रद्धा रखती थी लेकिन उम्र ज्यादा होने के कारण कहीं आने-जाने में असमर्थ थी। जिस वक्त उसे पता चला कि उसके गांव दानापुर में बाल गोबिंद राय संगतों सहित आए हुए हैं तो उसने बड़े प्यार और सत्कार से हांडी में खिचड़ी बनायी और जैसे-तैसे गुरुजी के पास पहुंच गई तथा उनसे खिचड़ी खाने की विनती की। एक तो बूढ़ी माता के अंदर बहुत प्रेम था दूसरा साहिबजादा बाल गोबिंद राय के दर्शन करके उसे अपनी कोई सुध ना रही। उसने थाली में भोजन परोसने की बजाए हांडी ही गोबिंद राय के आगे रख दी। जिस पर गोबिंद राय जी ने माता जमना द्वारा बनाई खिचड़ी संगतों में बंटवाई तथा खुद भी ग्रहण की। रात्रि विश्राम के बाद सुबह जब बाल गोबिंद राय जी आनंदपुर के लिए चलने लगे तो माता जमना जी ने उनसे निवेदन किया कि वे कहीं नहीं जाएं और यहीं पर रहते हुए दर्शन देते रहें। गोबिंद राय जी ने कहा ‘दादी मां मैं सदा आपके पास ही रहूंगा। जब भी मेरे दर्शन करने हों ऐसे ही खिचड़ी बना कर संगतों और गरीब जरूरतमंदों को खिलाना। मैं आपको उन्हीं के बीच बैठा हुआ नजर आउंगा।’ इसके बाद माता जमना देवी के दिल में जब भी गोबिंद राय जी दर्शन करने की उमंग पैदा होती तो वह खिचड़ी तैयार कर संगतों को खिलाती और उसे संगतों के बीच गोबिंद राय जी के प्रत्यक्ष दर्शन हो जाते। इस प्रकार माता जी अपने अंतिम समय तक गोबिंद राय जी के दर्शन करके निहाल होती रही। वह हांडी, जिसमें माता जमना देवी ने गोबिंद राय जी के लिए खिचड़ी तैयार की थी आज भी मौजूद है तथा यहां पर अब गुरुद्वारा हांडी साहिब बना हुआ है जहां पर आज भी खिचड़ी का लंगर लगातार चल रहा है।
शिक्षा: अगर हम संगत की खुशियां प्राप्त कर लें तो गुरु की खुशी अपने आप मिल जाती है।