Saakhi – Halwai Ki Fariyad Or Satguru Ji Ka Updesh
हलवाई की फरियाद और सतगुरु जी का उपदेश
छठे पातशाह जी के समय भाई सुथरे शाह जी बड़े कमाई वाले गुरसिक्ख हुए जो गुरू हरगोबिंद साहब जी के मेहर के पात्र थे और कलगीधर जी के समय तक गुरू घर की सेवा करते रहे। भाई सुथरा जी अपने व्यंग्यमय ढंग से गुरमत की कई रहस्यमयी गाँठें खोला करते थे।
भाई सुथरे शाह जी के जीवन की एक घटना इस तरह घटी कि शहर में एक हलवाई की दुकान थी। सुथरा जी उस दुकान से हर रोज मिठाई लेकर और आधा किलो दूध गर्म करवा कर वहां बैठ कर खा पी लेते और दुकानदार के पास हिसाब लिखवा जाते। हफ्ते बाद जब दुकानदार ने दूध के पैसे माँगे तो सुथरा जी ने दुकानदार को पैसे देने से मना कर दिया। अंतत: दुकानदार ने सतगुरु हरगोबिंद साहब जी के पास पेश होकर सुथरा जी की शिकायत कर दी तथा सुथरे से पैसे दिलवा देने की फरियाद की।
गुरू हरगोबिंद साहब जी ने सिक्खों को भेज कर सुथरे को बुला लिया। सुथरा जी, सतगुरू को अभिवादन करके उनके के सम्मुख खड़े हो गए और वचन किया सतगुरू जी ! क्या हुक्म है? बंदी छोड़ सतगुरू जी ने सुथरे को संबोधन करके कहा कि यह हलवाई तेरी शिकायत ले कर हमारे पास आया है और कहता है कि सुथरा आधा किलो दूध और मिठाई हर रोज खाता रहा है और जब अब इसने पैसे माँगे तब तुमने इस दुकानदार को पैसे देने से मना कर दिया।
सतगुरू जी ने दुकानदार को खड़ा करके पूछा क्यों हलवाई तेरी यही फरियाद है न? हलवाई ने कहा सतगुरू जी ! बिल्कुल मेरी यही फरियाद है। सुथरा मेरे हफ्ते के दूध और मिठाई के पैसे देने से मुकर गया है। सतगुरू जी ने फिर सुथरे को पूछा सुथरे ! तुमनें इस दुकानदार के पैसे क्यों नहीं दिए? सुथरा जी कहने लगे पातशाह ! मैं तो गुरू नानक पातशाह जी के हुक्म की पालना करते हुए पैसे देने से इन्कार किया है।
सतगुरू जी ने सुथरे से पूछा, वह कौन सा हुक्म गुरू नानक पातशाह जी का गुरबाणी में है जो किसी के पैसे देने से मुनकर (मना करने) होने के लिए कहता है? तब सुथरा जी कहने लगे सतगुरू ! जपुजी साहब में गुरू नानक देव जी का फरमान है ‘केते लै लै मुकर पाहि॥’ मैं तो इसके दूध के पैसों से ही मुनकर हुआ हूँ, सतगुरू जी तो कहते हैं कि संसार में कितने ही व्यक्ति ऐसे हैं जो लोगों के पास से नगद पैसे ले कर मुकर जाते हैं।
श्री गुरु हरगोबिंद साहब जी मुस्कराए और सुथरे को कहने लगे सुथरे आगे वाली पंक्ति पढ़, जो संसार और ईश्वर से ले कर मुनकर (इंकारी) हो जाते हैं वह ‘केते मूरख खाही खाहि॥’ की कार करके मूर्खों के टोले (झुण्ड/गु्रप) के मैंबर गिने जाते हैं। गुरसिक्ख ने साफ सुथरा व्यवहार रख कर संसार में अपनी सत्यता का प्रदर्शन करना है और दातार दाता (सब कुछ देने वाला ईश्वर) का धन्यवाद करके करतार (ईश्वर) के शुक्रगुजार बनना है।
सतगुरू का वचन सुन कर सुथरा कहने लगा पातशाह! मैंने तो आप जी का आसान सा हुक्म मान लिया, सभी हुक्म मैंने ही थोड़े मानने हैं? यह सामने हजारों की संख्या में सिक्ख बैठे हैं अगला हुक्म मानने के लिए मैंने उनके लिए छोड़ दिया है। सतगुरू जी ने दुकानदार को अपने खजांची से पैसे दिलवाए और सिक्खों को संकेत दिया सिक्खों! सुथरे के इन व्यंग्यमय वचनों से सीध (मार्गदर्शन/नसीहत) लो अगर गुरू का हुक्म मान कर गुरू की ख़ुशी प्राप्त करनी है तो संपूर्ण गुरू का हुक्म माना करो। अपनी मर्जी का हुक्म जो आपको अच्छा लगता हो, आसान से हुक्म की आधी-कच्ची कमाई मत किया करो। इस तरह करने से सतगुरू जी की प्रसन्नता नहीं मिलती है।
शिक्षा – गुरू का पूरा हुक्म मानना चाहिए। अपनी मर्जी का हुक्म जो हमें अच्छा लगता हो, आसान जैसे हुक्म की आधी-कच्ची कमाई से सतगुरू जी की प्रसन्नता प्राप्त नहीं होती है।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –