Saakhi – Guru Teg Bahadur Ji Or Syied Moosa

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गुरू तेग बहादुर जी और सैयद मूसा का भ्रम

गुरू तेग बहादुर जी आनंदपुर की उसारी (निर्माण कार्य) करवा रहे थे। उन दिनों में रोपड़ का रहने वाला सैयद मूसा आनंदपुर के पास से गुजरा। उसने बड़े ऊँचे मकान बनते देख कर एक सिक्ख से पूछा, ‘यह महलों जैसे बड़े और सुंदर मकान कौन बनवा रहा है? सिक्ख ने उत्तर दिया, ‘गुरू तेग बहादुर जी, जो गुरू नानक देव जी की नौवीं गद्दी पर हैं, वह यह नया शहर बसा रहे हैं।’ सैयद मूसा ने कहा, ‘बाबा नानक तो एक बड़ा वली और करनी वाला पुरुष था। क्या यह भी उसी तरह की शक्ति वाले हैं ? सिक्ख ने उत्तर दिया, ‘यह भी पूर्ण शक्ति वाले और वैरागी हैं।’

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सैयद मूसा ने बड़े अचंभे में पूछा, ‘अगर वह वैरागी हैं तो यह बड़े-बड़े महल क्यों बनवा रहे हैं ? क्या वह सही हैं या फकीर ? सिक्ख ने उत्तर दिया, ‘गुरू जी हस्ती हैं जैसे गुरू नानक जी थे।’ सैयद मूसा ने कहा, ‘मैं उनको मिल कर अपने मन का शंका दूर करना चाहता हूँ कि कैसे एक गृहस्थी दुनिया की माया में रहता हुआ माया का मोह त्याग सकता है और वैरागी हो सकता है।’ सिक्ख सैयद मूसा को गुरू जी के पास ले गया। गुरू जी ने सैयद मूसा को बड़े सत्कार के साथ अपने पास बिठा कर पूछा, ‘मुझे अपनी शंका बताओ, मैं आपके मन का भ्रम दूर करूँगा। सैयद मूसा ने गुरू जी को सवाल किया, ‘आप गृहस्थी हैं और बड़े-बड़े महल बना रहे हैं। यदि आपको माया के साथ मोह नहीं तो फिर यह बड़े-बड़े मकान क्यों बनवा रहे हैं ? गुरू जी ने कहा, ‘आज की रात आप हमारे पास रहो, सुबह चले जाना। सुबह तक आप के सवाल का उत्तर आप को मिल जायेगा।’

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शाम को सैयद मूसा ने लंगर में प्रसाद छका। सेवक ने उसे चारपाई और बिस्तर दे दिया। वह एक कमरें में चारपाई पर बिस्तर बिछा कर आराम से सो गया। रात को बड़ी जोरदार बारिश होने लगी और तेज हवाएं चलने लगी। बारिश और हवा के शोर से उसकी नींद खुल गई। जाग आने पर वह सोचने लगा कि अगर वह इस बारिश में बाहर होता तो उसका कितना बुरा हाल होता। यह कमरा, चारपाई और बिस्तर आदि वस्तुएँ, सब गृहस्थीयों की ही देन हैं। गुरू, गृहस्थीयों से एकत्र हुई माया (धन) सभी के भले के लिए खर्च करते हैं। इनको माया एकत्र करने का कोई लालच नहीं। यह गृहस्थी होते हुए भी त्यागी हैं। सुबह को जाते समय सैयद मूसा ने गुरू जी से कहा, ‘मेरे मन का शंका दूर हो गया है। मुझे पता चल गया है कि गृहस्थी ही ऋषियों-मुनियों के जन्मदाता हैं, सभी के अन्नदाता और आरामदाता हैं।

शिक्षा – जीवन यापन के लिए हमें माया अथवा धन की आवश्यकता होती है लेकिन हमें माया से एकत्र सुख सुविधाओं में रहते हुए उस परमात्मा को सदैव मन में रखना चाहिए जो यह सब कुछ देने वाला है तथा इनके मोह में नहीं पडऩा चाहिए।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –

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