Saakhi – Guru Nanak Sahib Da Janeu Sanskar

Saakhi - Guru Nanak Sahib Da Janeu Sanskar

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गुरु नानक साहिब का जनेऊ संस्कार

जब गुरु नानक देव जी नौ साल के हो गये तो उनके माता-पिता ने उनके जनेऊ संस्कार के बारे में विचार किया। एक दिन तय कर लिया गया और सारे संबंधियों को निमंत्रण भेज दिये गये। निश्चित दिन घर के पुरोहित पंडित हरदयाल पहुंच गये। घर में एक ऊँची जगह एक चटाई बिछाई गई और कुछ मंत्र पढ़ कर पंडित ने उसके चारों और एक लकीर खींच दी और स्वयं चटाई पर बिराज (बैठ) गये। गुरु जी को पंडित के सामने बिठा दिया गया। चटाई के चारों ओर गांव के लोग व रिश्तेदार बैठ गये। सारी रस्में पूरी करके पंडित हरदयाल ने गुरु नानक के गले में जनेऊ पहनाने के लिए अपने हाथ उठाए। पर रिश्तेदारों और गांव वासियों की उस समय हैरानी की कोई सीमा नहीं जब उन्होंने देखा की गुरु जी ने अपने हाथों से पुरोहित की जनेऊ वाली हाथ पीछे धकेल दी और जनेऊ पहनने से मना कर दिया।

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वे कहने लगे, ‘पंडित जी, पहले मुझे बताइये कि जनेऊ पहनने का क्या फायदा है ?’ पहले मुझे विस्तार से समझाइये फिर जनेऊ मेरे गले में डालें। पंडित हरदयाल ने कहा, ‘देखो बेटा ! यह हमारे पुरखों द्वारा चलाई गयी परम्परा/मर्यादा है। जब तक ऊँची जाति का व्यक्ति जनेऊ नहीं पहनता है, वह नीच और शूद्र ही रहता है। जनेऊ पहनने से वह पवित्र और ऊँची जाति का बन जाता है।’

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गुरु जी पंडित की यह बात सुनकर मुस्कुराए और कहने लगे, ‘आपकी यह बात मुझे उचित नहीं लगती, इसमें कोई दलील नहीं। नीच और शूद्र वह ही होता है जो नीचों वाले गंदे और बुरे कर्म करे। एक द्रोही, पापी और पाखंडी एक धागा पहन कर कैसे ऊँची जाति का बन सकता है?’ पंडित ने ऋषिओं मुनिओं का वास्ता (हवाला/उदाहरण) देते हुए कहा कि हमारे पुरखों की रीति और परंपरा हम कैसे छोड़ सकते हैं। गुरु जी ने फिर मुस्कुराकर कहा, ‘मिश्र जी! आप विवेक (ज्ञान) की बात नहीं कर रहे, जब तक आप मुझे इस जनेऊ को पहनने के लाभ स्पष्ट रूप में नहीं बताते, तब तक मैं जनेऊ नहीं पहनुंगा।’

यह आपने जो जनेऊ का धागा पकड़ा है यह कपास की रेशों कताई करके बनाया गया है, यह धागा कुछ समय बाद मैला होकर टूट जायेगा और फिर दूसरा पहिना जाएगा। जब व्यक्ति इस संसार को छोड़ जायेगा तो यह धागा यहीं रह जायेगा और व्यक्ति की आत्मा के साथ नहीं जायेगा। मुझे ऐसा जनेऊ चाहिए जो कि मेरी आत्मा के साथ परलोक में भी मेरा साथ दे, अगर आपके पास ऐसा कोई जनेऊ है तो वह जरूर मुझे पहिना दीजिए। पंडित ला-जबाब (कोई उत्तर देने में असमर्थ) हो गया, अंतत: हार कर उसने गुरु साहिब से पूछा कि आत्मा का जनेऊ कैसा होता है, आप ही बता दीजिए। तब गुरु जी ने कहा, ‘इस जनेऊ को बनाने के लिए दया रूपी कपास, संतोष रूप सूत, जत रूपी गांठ, सत्य रूपी लपेटे का उपयोग किया जाये तो यह आत्मा का जनेऊ बन जाता है। यह जनेऊ पहन कर व्यक्ति जब अच्छे कर्म करता है, सच्चे और पवित्र कार्य/कमाई करता है तो वह नीच जाति को होने के बावजूद स्वर्ण जाति का बन जाता है।’

सलोकु म: ੧ ॥
दइआ कपाह संतोखु सूतु जतु गंढी सतु वटु ॥
एहु जनेऊ जीअ का हई त पाडे घतु ॥
ना एहु तुटै न मलु लगै ना एहु जलै न जाइ ॥
धंनु सु माणस नानका जो गलि चले पाइ ॥
चउकडि़ मुलि अणाइआ बहि चउकै पाइआ ॥
सिखा कंनि चड़ाईआ गुरु ब्राहमणु थिआ ॥
ओहु मुआ ओहु झडि़ पइआ वेतगा गइआ ॥੧॥ (ਅੰਗ ੪੭੧)

शिक्षा – कोरे कर्मकाण्डों का त्याग करना चाहिए। जब तक हमारा मन और कर्म पवित्र नहीं हम परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –

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