Saakhi – Guru Nanak Ji Ka Jagnannath Ke Brahamn Ko Updesh

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Saakhi – Guru Nanak Ji Ka Jagnannath Ke Brahamn Ko Updesh

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गुरू नानद देव जी का जगन्नाथ के ब्राह्मण को उपदेश

गुरू नानक देव जी अपनी उदासी के दौरान पूर्णिमा वाले दिन जगन्नाथ (उड़ीसा) में पहुँचे। उस दिन उस तीर्थ पर स्नान का मेला लगा हुआ था। (इस तीर्थ स्थान पर कृष्ण की एक 84 फुट ऊँची मूर्ति है जिस का नाम जगन्नाथ है। हर साल उस मूर्ति को रथ पर रख कर जुलूस निकाला जाता है।) ब्राह्मणों ने यह सिद्ध किया हुआ था, जो उस रथ के पहिये के नीचे आ कर मरेगा उसको मुक्ति मिलेगी। इसलिए कई मुक्ति के इच्छुक घर-बार दान कर रथ के नीचे शरीर त्याग देते थे।

मेले में गुरू जी की नजर एक ब्राह्मण पर पड़ी जो हाथ में माला पकड़ कर, आँखें बंद कर, चौकड़ी मार कर एक मूर्ति के आगे बैठा था। गुरू जी ने उसको जा कर पूछा, ‘भक्त जी, आँखें बंद कर किस का ध्यान रखते हो, जबकि मूर्ति आप के आगे पड़ी है?’

उसने उत्तर दिया, ‘मुझे आँखें बंद करने पर तीनों लोक नजर आते हैं। इसलिए मैं आँखें बंद करता हूँ।’ इस तरह का उत्तर दे कर उसने आँखें फिर से बंद कर ली। जिस मूर्ति के आगे लोग पैसे दान करते थे (चढ़ावा चढ़ाते थे), गुरू जी ने उसके आगे से उठा कर उसके पीछे रख दी। जब ब्राह्मण ने आँखें खोलीं तो उसे मूर्ति नजर नहीं आई। उसने रोना कराहना शुरू कर दिया।

गुरू जी ने कहा, ‘भक्त जी, रोने की आवश्यकता नहीं हैं। अपनी, आँखें बंद करो और देख लो कि आपकी मूर्ति कहाँ है। आपको तो आँखें बंद करने पर तीनों लोक का ज्ञान हो जाता है। ब्राह्मण ने कहा, ‘साधु जी, मैं तो मूर्ति के आसरे ही पल रहा था। आँखें बंद करने पर मुझे कुछ भी नजर नहीं आता है।

गुरू जी ने कहा, ‘यह तेरी दूसरी भूल है कि जो तू सोचता है कि यह मूर्ति तुझे खाने को देती थी। रोटी तो तुझे परमात्मा देता है। यह मूर्ति न तुझे रोटी दे सकती है और न ही छीन सकती है। इन मूर्तियों की पूजा, तीर्थों का स्नान और अन्य पाखंड किसी काम के नहीं। सिर्फ एक परमात्मा का सिमरन कर। परमात्मा का सच्चा आसरा ले।

मूर्ति का झूठा आसरा छोड़ ब्राह्मण ने कहा, ‘अगर मैं झूठ न बोलूंगा तो खाऊँगा कहाँ से? गुरू जी ने कहा, ‘तू तो कहता था कि तुझे आँखें बंद करने पर तीनों लोक नजर आते हैं परन्तु तुझे परमात्मा नजर नहीं आता जो सब की पालना करता है। वह तुझे भी खाने को देगा। तू झूठ को त्याग दे।’

ब्राह्मण ने गुरू जी का कहा मान कर मूर्ति दूर फैंक दी और परमात्मा के गुण गाने लगा। इस घटना के समय जो वहाँ उपस्थित थे उन्होंने ब्राह्मण के आगे पैसे रखने शुरू कर दिए। अब जो भी उस रास्ते गुजरता, ब्राह्मण के आगे पड़े पैसे देख कर खुद भी कुछ न कुछ भेंट कर जाता।

इस तरह उस ब्राह्मण का गुजारा मूर्ति के बिना ही, उस मालिक के गुण गाने से होने लगा। उसको समझ आ गई कि झूठे दिखावे और पाखंड की जरूरत नहीं। सभी को खाने के लिए वह ईश्वर देता है जिसने उनको पैदा किया है। झूठ के पीछे लग कर झूठी चिंता करने का कोई लाभ नहीं।

शिक्षा – हमें अपना गुजारा करने के लिए झूठ नहीं बोलना चाहिए और न ही किसी पाखंड का सहारा लेना चाहिए। जिस परमात्मा ने हमें पैदा किया है वह सदा हमारी रक्षा करता है। इसलिए झूठ, पाखंड छोड़ कर उस परमात्मा का गुणगाण करना चाहिए।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chukk Baksh Deni Ji –

 

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