Guru Nanak Dev Ji Ka Makka Jana
गुरु नानक देव जी का मक्के जाना
एक दिन भाई मरदाना ने गुरु जी से विनती की, ‘आप मुझे जंगलों में, पहाड़ों की चोटियों पर और उन स्थानों पर लेकर घूम रहे हैं जहां पर ना कोई निवास करता है और ना ही कोई दिखाई देता है। इस्लाम धर्म में मक्का के हज की बहुत सराहना की गई है। आप मुझे मक्का का हज करवा दो।’ गुरु जी मरदाना की विनती मानते हुए उसे अपने साथ लेकर मक्का की ओर चल दिए। रास्तें में उन्हें कुछ हाजी मिल गये जो इधर-उधर की बातें करने लगे। गुरु जी ने कहा, ‘भाई मरदाना, जब हज के लिए जाएं तो खुदा की तारीफ की ही बात होनी चाहिए। दूसरी फालतू बातें करते हुए जाना हाजियों को शोभा नहीं देता और इस प्रकार से हज करने वाले को कुछ भी प्राप्त नहीं होता।’ गुरु जी और मरदाना ने उन हाजियों का साथ छोड़ दिया और परमात्मा की तारीफ गाते हुए मक्का के नजदीक पहुंच गये। यहां पहुंचकर उन्होंने हाजियों वाले कपड़े पहन लिये और गुरु जी ने अपनी बाणी वाली किताब बगल में रख ली। इस तरह के पहनावे के साथ वे मक्का की मस्जिद के अंदर चले गये। सारा दिन खुदा के गुण गाते हुए गुजार दिया और रात को आराम करने चले गये। सुबह सुबह भारत से गया एक हाजी मुल्ला, जिस का नाम इतिहास में जीवन बताया गया है, सोए हुए हाजियों के बीच से गुजर रहा था तभी उसकी निगाह गुरु जी के पैरों की तरफ गई जो काबे की तरफ थे। यह देखते ही उसको गुस्सा आ गया। उसने गुरु जी की पीठ में लात मारी और कहा, ‘ओ काफिर, तुझे नजर नहीं आता, तूने खुदा के घर की तरफ अपने पैर कर रखे हैं ?’ गुरु जी ने उसे बड़ी विनम्रता से जवाब दिया, ‘मुल्ला जी, मुझसे गलती हो गई। मुझे पता नहीं था कि सिर्फ इस तरफ ही खुदा का घर है। आप मेरे पैर उस तरफ कर दो जिस तरफ खुदा नहीं है।’ यह सुनकर मुल्ला जीवन का गुस्सा और भी बढ़ गया। उसने बड़ी बेदर्दी से गुरु जी के पैर पकड़े और घसीट कर दूसरी तरफ कर दिये। गुरु जी ने कहा, ‘मुल्ला जी, क्या इस तरफ खुदा का घर नहीं है? मुल्ला जीवन ने जब उस तरफ देखा तो उसको मक्का उस तरफ भी नजर आया। मुल्ला जीवन गुस्से में जिस तरफ भी गुरु जी के पैर कर उसे उसी तरफ मक्का नजर आए। उसने यह सब होता देख शोर मचा दिया और सारे हाजी जाग गए। सभी यह कौतक देखकर हैरान होने लगे जिस का कथन भाई गुरुदास जी की वारों में इस प्रकार लिखा है :-
बाबा फिर मक्के गईआ नील बस्त्र धारे बनवारी।
आसा हत्थ किताब कछ कूजा बांग मुसल्ला धारी।
बैठा जाए मसीत विच जित्थे हाजी हज गुजारी।
जा बाबा सुत्ता रात नो वल्ल महराबे पाए पसारी।
जीवण मारी लत्त दी, केहड़ा सुत्ता कुफर कुफारी।
लत्ता वल्ल खुदाए दे क्यूं कर पइया हुए बजिगारी।
टंगों पकड़ घसीटिआ फिरिआ मक्का कला दिखारी।
होए हैरान करेन जुहानी। (वार 1-32)
सारे हाजियों में एक रुकनदीन नाम के काजी ने पूछा आपकी इस किताब में क्या है ? तो गुरु जी ने उत्तर दिया, खुदा की तारीफ और मानवता का सिद्धांत। रुकनदीन ने कहा बताओ बड़ा कौन है हिन्दू या मुसलमान ? गुरु जी ने उत्तर दिया, ‘खुदा के दर पर केवल नेक कर्म ही परवान होते हैं। उसके दरबार में नेक कर्मों के बिना ना हिन्दू के लिए कोई जगह है औ ना की किसी मुसलमान के लिए।’ यह उत्तर सुनकर हाजियों ने गुरु जी से और भी बहुत सवाल किये। गुरु जी ने सभी के मन की शंकाओं को दूर किया। जब गुरु जी मदीने की तरफ जाने के लिए तैयार हुए तो काजी रुकनदीन ने गुरु जी से विनती की कि वह मक्का में अपने आने की कोई निशानी (यादगार) छोड़ जाएं। गुरु जी ने विनती स्वीकार करते हुए अपने खड़ाव (पुराने समय में पैरों में पहने जाने वाली लकड़ी की चप्पलें) काजी रुकनदीन को दे दिये। जिन्हें उसने सत्कार सहित सुशोभित कर दिया, इसका विवरण हमें भाई गुरदास जी की वारों में मिलता है यथा ‘धरी निशानी कउस दी मक्के अंदर पूज कराई।’ आज भी जब मुसलमान भाई मक्का जाते हैं तो इन खड़ावों के दर्शन करके यात्रा सफल मानते हैं।
शिक्षा: गुरु नानक देव जी ने काजियों, मौलवियों की इस कटड़ता को तोड़ा कि खुदा मक्का में भी है और बाकी सभी जगह भी। (हमें अपने धर्म में परिपक्व रहते हुए, सभी धर्मों का सत्कार करना चाहिए।)