Saakhi – Guru Gobind Singh aur Salardeen Kaaji
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साखी – गुरु गोबिंद सिंह जी और काजी सलारदीन
श्री आनंदपुर साहिब में साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की शरण में एक दिन सलारदीन नाम का एक काजी दर्शनों के लिए पहुंचा। उसने देखा दरबार में देश प्रदेश से संगत आकर लाई गई भेंट सतगुरु जी के आगे रख उनके पवित्र चरण कमलों पर नमस्कार रही थी वहीं सतगुरु जी सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए वरदान दे रहे थे।
यह देख सलारदीन काजी ने शंका करते हुए गुरुजी से कहा ‘इतनी संगत आपके पास आती है, अरदास करती है, बेनती करती है। आप उन्हें आशीष देकर क्या कर देते हो ? मुझे इसका कोई मनोरथ समझ में नहीं आया क्योंकि खुदा ने जो भाग्य में लिखना था वह तो पहले ही लिख दिया है।’
सतगुरुजी ने काजी की शंका दूर करने के लिए तोशेखाने से एक सफेद कागज, मोहर और स्याही मंगवाई और काजी से कहा ‘इस मोहर के अक्षर पढ़ो।’ इस पर काजी ने कहा ‘जी अक्षर उल्टे होने की वजह से पढ़ नहीं पा रहा हूं।’ गुरुजी ने मोहर स्याही में भिगो कागज पर ठप्पा लगाया तो काजी ने तुरंत उसे पढ़ लिया।
गुरुजी ने काजी का शंका दूर करते हुए कहा हम परमेश्वर की मर्जी के खिलाफ नहीं चलते, यह गुरु नानक का घर है जो स्वयं निरंकार का रूप धारण कर इस जगत को तारने के इस जगत में आए। जब कोई जीव अपने बुरे कर्मों के उल्टे लेख (बुरा भाग्य) लेकर गुरुजी की शरण में आता है तो उसके उल्टे लेख सीधे (अच्छे) हो जाते हैं। जो श्रद्धा से चरणों पर शीश निवाते हैं, उनके उल्टे लेख इस मोहर की तरह उल्टे से सीधे (बुरा भाग्य उलट जाता है) हो जाते हैं।
शिक्षा : गुरु नानक का घर बख्शीशें देने वाला है। यहां पर कोई उल्टे लेखों वाला अर्थात बुरे कर्मों वाला भी मन को झुकाकर श्रद्धा से शरण में आ जाए तो उसके उल्टे लेख भी सीधे (भाग्य पलट जाता है) हो जाते हैं।