Saakhi – Guru Amardas Ji Or Bhai Mahesh Shah
गुरू अमरदास जी और भाई महेश शाह
भाई महेशा गुरू अमरदास जी का एक प्रसिद्ध और प्यार वाला सिक्ख था। सुल्तानपुर का रहने वाला भाई महेशा व्यापारी था और साथ ही शाहूकारा भी किया करता था। उसकी गिनती धनी लोगों में होती थी। अच्छी कमाई होने के चलते घर में हर प्रकार की सुख-सुविधा थी। समय बीतने के साथ ही उसके मन में विचार आया कि यहाँ तो काफी सुख भोग लिया और भोग रहा हूँं, कुछ कोशिश अगली जगह के लिए भी करनी चाहिए। यह धन पदार्थ तो यहाँ ही रह जाना है। कुछ कमाई आगे के लिए भी पल्ले बाँधना चाहिए। भाई महेशे के मन में ऐसा विचार आने पर किसी ने उसे गुरू अमरदास जी के पास जाने की सलाह दी। वह गोइन्दवाल साहिब पहुँच गया।
श्री गुरु अमरदास जी का आदेश था कि जो कोई भी उनके दर्शन करना चाहता हो, वह पहले पंगत में बैठ कर लंगर ग्रहण करे। महेशा लंगर से प्रसाद ग्रहण कर गुरू जी के समक्ष उपस्थित हो गया। गुरू साहिब को माथा टेक कर उनके चरणों के पास ही बैठ गया।
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गुरू जी ने पूछा, ‘कहो, महेश शाह कैसे आना हुआ?’ भाई महेशा ने जवाब दिया – सच्चे पातशाह ! मुझ पर कृपा करो, मुझे नाम की सौगात प्रदान करो। ऐसी मेहर करो कि मेरा परलोक संवर (सुधर) जाए। इस जीवन के बाद वाला समय आसान और सुख वाला हो।’
गुरू जी – नाम की कमाई बहुत मुश्किल है। तुझे दुनिया के सुख भोगने की आदत है। इस रास्ते पर चलने वालों को बड़ी तकलीफें सहन करनी पड़ती हैं। यह रास्ता तो खंडे से भी तीखा और बाल से भी पतला है। क्या पता तुम्हारे साथ क्या हो जाये? फिर तुम दु:खी हो जाओगेे, डोलोगे और पछताओगे, न इधर के लायक रहोगे और न उधर के लायक। अच्छी तरह सोच विचार कर लो।
भाई महेशा – सच्चे पातशाह ! मैंने पूरा सोच विचार कर लिया है। आप जी मुझ पर कृपा करो, मुझे ईश्वर की भक्ति के राह पर चलाओ और इस पर चलने की ताकत भी प्रदान करो। रास्ते की तकलीफ बर्दाश्त करने की हिम्मत भी तो आप जी ने ही देनी है ! मुझ पर दया करो, सच्चे नाम का सच्चा धन प्रदान करो, फिर मुझे कोई चिंता नहीं रहेगी। मेरा बेड़ा पार हो जायेगा।’
गुरू जी ने कहा ‘भाई महेशे नाम-धन मिलने बाद दुनिया वाला धन तुझसे छिन गया तो दु:खी तो नहीं होगा ?’
भाई महेशा – ‘सच्चे पातशाह ! आप जी की मेहर हो गई तो दु:ख क्यों करना है? वैसे भी दुनिया का धन तो मैंने एक दिन छोड़ कर जाना ही है। अगर वह धन मुझे पहले ही छोड़ जाए तो कौन सी बड़ी बात है? मुझे आपके दर पर आए को खाली न मोड़ें। मेरी झोली सच्चे नाम धन से भर दीजिए।
भाई महेशे का पक्का इरादा देख कर गुरू जी ने उसके सिर पर हाथ फेरा, पीठ थपथपाई और उसे नाम की दात प्रदान कर दी। इसके साथ जैसे भाई महेशे की काया ही पलट गई। उसके रोम-रोम में ऐसा रस और आनंद भर गया, जैसा उसने पहले कभी महसूस नहीं किया था। उसके मन में शान्ति, सुख और ख़ुशी का निवास हो गया और वह नाम का रसिया बन गया।
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वह नाम जपते हुए, काम करते हुए मिल बाँट कर छकने का उपदेश कमाते हुए शाहूकारा और व्यापार भी करता रहा। कुछ समय बाद वाहिगुरू के आदेश से अलग ही स्थिति बननेे लगी। शाहूकारे में घाटा पडऩे लगा। संसारिक धन जाने लगा और गरीबी सताने लगी। दाल-रोटी का गुजारा ही बड़ी मुश्किल से होने लगा परन्तु महेशा जरा भी नहीं घबराया और अडिग रहा। सुल्तानपुर के लोग उसका मजाक बनाने लगे कि ‘देखो, अच्छी सिक्खी अपनाई ही, अपनी सारी कमाई गवाँ बैठा है।’ परन्तु महेशे ने इस हंसी-मजाक की जरा भी परवाह नहीं की। वह ईश्वर की ईच्छा को मीठा करके मानता और अपना कार-व्यवहार करता रहा।
गुरू जी महेशे की आस्था और भरोसा देखकर बड़े प्रसन्न हुए। एक दिन जब वह गोइन्दवाल गुरू जी के दर्शन करने आया तो उन्होंने उसके सिर पर हाथ फिरा, पीठ पर थापी दी और कहा, ‘महेशे ! तुमने अपना वचन पूरी तरह निभाया है, तुम धन के जाने पर उदास और दु:खी नहीं हुए। सिक्खी यही माँग करती है कि धन आए तो उसे अच्छे अर्थ लगाओ, परन्तु अपना मन उससे ऊँचा और अलग रखो। अब कार-व्यवहार करते रहो। करतार मेहर करेगा, माया फिर आयेगी, अब वह तुम्हारे मन में नशा या अहंकार नहीं पैदा करेगी। तुम उसे एकत्र मत करना, इस्तेमाल करना और बाँट देना।’
समय बीता और महेशा फिर धनी हो गया। वह नाम जपता, काम करता और बाँट कर छकता था। उसका मन नीचा (विनम्र/दयालु) और मत ऊँची हो चुकी थी।
शिक्षा – हमें सांसारिक धन की बजाय नाम धन को पहल देनी चाहिए और हर जरूरतमंद की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –