Saakhi – Chhote Sahibzadon Ki Shahidi
Saakhi – Chhote Sahibzadon Ki Shahidi
साखी – छोटे साहिबजादों की शहीदी
जोरावर सिंह और फतह सिंह गुरू गोबिन्द सिंह जी के छोटे साहिबजादे थे। आनंदपुर साहिब छोड़ते समय उनकी उम्र सात साल और पाँच साल की थी। रात के अंधेरे में सिरसा नदी पार करते हुए छोटे साहिबजादे और गुरू गोबिन्द सिंह जी की माता गुजरी जी परिवार से बिछड़ गए। नदी पार करने पर आगे उन्हें गुरू घर का रसोइया गंगू मिल गया। गंगू उनको अपने गाँव खेड़ी ले गया। एक-दो दिन तो उसने माता जी और साहिबजादों की सेवा की परन्तु तीसरे दिन उस ने धन के लालच में आ, माता जी और बच्चों को पुलिस के हवाले कर दिया।
सूबा सरहिन्द को जब इन गिरफ्तारियों का का पता चला तो वह बहुत खुश हुआ। उसने कहा, उनको ठंडे बुर्ज में बंद कर दिया जाये और उन को ठंड से बचने के लिए कोई कपड़ा भी न दिया जाये और ना ही कुछ खाने को दिया जाए। सूबे के हुक्म के तहत माताजी और बच्चों को ठंडे बुर्ज में भूखा रखा गया और दूसरे दिन सुबह उनको सूबे की कचहरी में पेश होने के लिए एक सिपाही बुलाने आया।
पौत्रों के कचहरी में रवाना होने से पहले उनकी दादी माता गुजरी जी ने बच्चों को शिक्षा दी कि धर्म नहीं त्यागना चाहे सूबा आपको कितने भी लालच दे और कितना भी डराये या धमकाए। दोनों साहिबजादे सिपाही के साथ सूबे की कचहरी में दाखिल हो गए। उन दोनों ने दोनों हाथ जोड़ कर, वाहिगुरू जी का खालसा वाहिगुरू जी की फतेह बुलाई।
यह सुन सूबा कुछ बोलने ही लगा था कि उससे पहले उसका मंत्री सुच्चा नंद बोल उठा, ‘बच्चों, यह मुगल सरकार का दरबार है। आनंदपुर का दरबार नहीं। यहाँ सूबे को सिर झुकाना होता है। मैं हिंदु होते हुए भी प्रतिदिन सूबे को सिर झुकाता हूँ।’
साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह ने उतर दिया, हमारा सिर परमात्मा और गुरू के बिना ओर किसी के आगे नहीं झुक सकता। सुच्चा नंद को यह कोरा जवाब सुन साहिबजादे पर गुस्सा तो बहुत आया परन्तु कर कुछ न सका। चुप करके बैठ गया। सूबा वजीर खान को खुद पर बहुत भरोसा था कि वह मासूम बच्चों को दुनिया की माया के लालच में फंसा कर मुसलमान बना लेगा, जो उसकी बहुत बड़ी जीत होगी। उसने साहिबजादों को बहुत लालच दिए परन्तु वह न माने।
अंत में सूबे ने उनको पूछा, ‘अगर मैं आपको छोड़ दूँ तो आप बाहर जा कर क्या करोगे?’ साहिबजादा जोरावर सिंह ने उत्तर दिया, हम बड़े हो कर सिक्ख इकठ्ठा करके ज़ुल्म के खिलाफ तब तक लड़ेंगे जब तक ज़ुल्म का अंत नहीं होता या हम ज़ुल्म का खात्मा करते हुए शहादतें प्राप्त नहीं कर जाते, जैसे हमारे दादा जी और उनके सिक्खों ने हमारे लिए मिसाल कायम की है।
हम ज़ुल्म के आगे हार नहीं मान सकते। हम आत्मसम्मान के साथ ही मरना चाहते हैं। बुजदिलों की जिंदगी हमें पसंद नहीं। यह सुन कर सूबा डर गया, कि अगर ये बच्चे जिंदा रहे तो उसकी जान को खतरा हमेशा बना रहेगा। उसने उनको खत्म करने में ही अपनी भलाई समझी।
(सात साल और पाँच साल के साहिबजादों को उसके हुक्म से जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया। इस तरह गुरू गोबिंद के लाल शहादत का जाम पी गए और छोटी उम्र में ही बड़ी शौर्यगाथा गढ़ गए। साहिबजादों का धर्म पर टिके रहना, वास्तव में सूबा सरहिन्द की एक ओर हार थी। साहिबजादों की शहादत के बारे सुन कर माता जी ने भी देह त्याग दी।
शिक्षा – हमें अपने धर्म पर अचल रहना चाहिए और गुरू के पक्के सिक्ख बनते हुए किसी की अधीनता नहीं स्वीकानी चाहिए।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhul Chuk Baksh Deni Ji –