Saakhi – Bibi Jiwai Or Ishwar Ka Aadesh
बीबी जिवाई और ईश्वर का आदेश
खडूर साहिब में गुरु अंगद देव जी के आदेश से खुला लंगर चला करता था। जहाँ पर आने जाने वाला प्रत्येक प्रसाद ग्रहण करता था। सभी जाति के लोग एक जगह बैठ (एक पंक्ति में) कर प्रसाद ग्रहण करते थे। सारे सिक्ख बड़े उत्साह और प्रेम से इन सभी की सेवा किया करते थे।
खडूर साहिब से लगभग तीन कोस की दूरी पर भाई जीवा नाम का एक प्रेमी गुरसिक्ख रहा करता था। वह प्रतिदिन लगर के लिए दहीं और खिचड़ी पहुँचाया करता था। यह सेवा उसने सारी उम्र निभाई। उसके बाद उसकी यह सेवा उसकी पुत्री बीबी जिवाई ने संभाली। वह भी रोज दहीं और खिचड़ी लेकर खडूर साहिब जाने लगी।
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एक दिन जब वह दहीं और खिचड़ी लेकर रवाना होने लगी तो बहुत जोर की आँधी आ गई। बीबी ने सोचा, ‘अगर आँधी इसी तरह चलती रही तो मैं खिचड़ी, दही लेकर समय से नहीं पहुँच सकूंगी।’ उसने वाहिगुरु जी के आगे अरदास की कि आँधी रुक जाये, ताकि मैं दहीं और खिचड़ी लेकर समय से लंगर में पहुँच सकूं। वाहिगुरु जी की कृपा से कुछ देर बाद आँधी रुक गई। बीबी जिवाई दही और खिचड़ी लेकर समय रहते खडूर साहिब पहुँच गई।
गुरु साहिब ने बीबी जिवाई द्वारा लायी गई दही खिचड़ी खाने से मना कर दिया। जब बीबी जिवाई ने कारण पूछा तो गुरु जी ने कहा – पुत्री ! तुमने ईश्वर की रजा (ईच्छा) में दखल दिया है। अच्छे बच्चे पिता का आदेश पलटने का प्रयास नहीं करते। हमें भी अच्छे बच्चों की तरह पिता परमात्मा की आज्ञा में रहना चाहिए और वो जो करे, उसी को भला (हमारे लिए अच्छा) मनाना चाहिए। इस आँधी ने भी कई जीवों का भला करना था।
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गुरुसिक्ख को ईश्वर का किया हुआ खुशी खुशी मानना चाहिए। बीबी जिवाई ने अपनी भूल मान कर माफी माँगी। उसने और अन्य सिक्खों ने गुरुसिक्खी का यह उच्च असूल/नियम अच्छी तरह समझ लिया और हमेंशा इसकी पालना करने का वादा किया।
शिक्षा – गुरुसिक्ख को परमात्मा का हुक्म खुशी खुशी मानना चाहिए और ईश्वर के काम में दखल नहीं देनी चाहिए।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –
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