Saakhi – Bhekhi Sikhi Or Asli Sikhi
वेशधारी सिक्खी और असली सिक्खी
गुरू गोबिन्द सिंह जी रोजाना शाम को सिंघों को साथ लेकर शिकार खेलने जाते और शेरों तथा चीतों का शिकार करते। शिकार पर जाने से सिंघों हौसले बहुत बढ़ गए और उन्होंने शेरों आगे डटना शुरू कर दिया। एक दिन गुरू जी शिकार किये गये शेर की चमड़ी उतरवा कर अपने साथ ले आए। उन्होंने हुक्म किया कि इस चमड़ी को एक गधे पर मढ़ दिया जाये और रात के अंधेरे में गाँवों के नजदीक छोड़ दिया जाये। सिंघों ने ऐसा ही किया।
सुबह गाँव के लोगों ने जब उस गधे को देखा तो उस पर शेर की चमड़ी होने के कारण, उनको यह लगा जैसे गाँव के नजदीक शेर घूम रहा हो। सारे गाँव में ख़बर फैल गई। गाँव के लोग शेर के डर से सहम गए। कोई भी उस तरफ जाने की हिम्मत न करता। दो तीन दिन वह गधा बिना रोक टोक फसल और घास चरता हुआ गाँव के आस-पास घूमता रहा। किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि जो घास चरता हो वह शेर नहीं हो सकता। दूर से ही उसकी चमड़ी देख कर अनुमान लगा लेते कि वह शेर था।
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एक दिन एक कुम्हार उस तरफ से अपने गधे ले कर जा रहा था। उसके गधों ने रेंकना शुरू कर दिया। शेर की चमड़ी वाले गधे से भी अपने भाइयों की आवाज का जवाब दिए बिना नहीं रहा गया, उसने भी उनकी सुर के साथ अपनी सुर मिला दी। जब कुम्हार ने उसे रेंकते हुए सुना तो उसके ऊपर से शेर की चमड़ी उतार दी। अपना ग़ुम हुआ गधा मिलने पर वह बहुत खुश हुआ और गधे के दो डंडे मार दूसरे गधों के साथ मिला लिया। गधे के रेंकने से उसकी पोल खुल गई।
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गांव के लोगों को जब पता लगा कि यह शेर की चमड़ी गधे पर गुरू गोबिन्द सिंह ने सिलवाई थी तो वे सभी इकठ्ठा होकर गुरू जी के पास पहुंच गए। उन्होंने विनती की, ‘गुरू जी, आपने तीन दिन तक गाँव के लोगों को एक गधे से क्यों डराया, इसमें कौनसा भेद था ? वह हम सभी को समझाया जाये।’
गुरू जी ने फरमाया, ‘यह चरित्र सिघों (सिक्खों) को समझाने के लिए रचा गया था। एक सिक्ख बाहर के दिखावे के चिह्नों के साथ सिंह नहीं बन जाता। सिंह के अंदर भी सिक्खी होनी चाहिए। शेर की चमड़ी डाल कर गधा शेर नहीं बन सका। तीन दिन वह गधा गाँव के भोले भाले लोगों को जरूर डराए रखा। जब उसका भेद खुल गया तो वह फिर से एक गधा बन कर रह गया।
सिक्ख इस तरह केस, दाढ़ी रख कर, कृपाण डाल कर सिंह नहीं बन जाता। कर्मों से खाली नकली सिंह भले ही बुलवा सकता है। सिक्ख के अंदर भी सिक्खी का होना जरूरी है। सिक्ख वास्तव में कर्मों से ही परखा जा सकता है। इस तरह की रहनी (नित्यकर्म/अवस्था) गुरू की शिक्षा पर चल कर ही प्राप्त होती है।
शिक्षा -हमें दिखावे के सिक्ख नहीं बनना चाहिए, सिक्खी के आदर्श और गुरू के हुक्म पर चल कर ही असली सिक्ख बना जा सकता है।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –