Saakhi-Bhai Sadhu Ji Or Pandit Ji
भाई साधु जी और पंडित जी
भाई साधु जी और उनका सुपुत्र भाई रूपा जी गुरु हरगोबिन्द साहब जी महाराज सच्चे पातशाह जी के अतिप्रिय सिख थे।
गुरु हरगोबिन्द साहब जी महाराज की असीम कृपा से इन्हें खेती और साहूकारी में अपार धन और इज्जत की प्राप्ति हुई।
दोनों पिता-पुत्र जरुरतमंद लोगों को उनकी जरूरत अनुसार बहुत कम ब्याज दर पर कर्ज देते थे। धन का ब्याज न चुकाने वाले को वो अक्सर मूलधन चुकाने पर भी ऋणी व्यक्ति का सारा कर्ज माफ कर देते थे।
उनकी हर किसी के जरूरत पर काम आने और दयालु स्वभाव के कारण उनके दरवाजे पर अक्सर लोगों की भीड़ लगी रहती थी।
एक दिन उनसे मिलने एक ब्राह्मण आया। उस समय भाई साधू जी बही-खाता देख रहे थे तथा भाई रूपा जी पिता के साथ बैठे अन्य कार्य कर रहे थे।
पंडित जी ने अभिवादन करने के बाद एक जानकार व्यक्ति की जमानत पर भाई साधू जी से 500 रुपए कर्ज की मांग की।
इस पर भाई साधू जी ने भाई रूपा जी को अंदर कक्ष से रुपए लाने को कहा।
अभी भाई रूपा अंदर कक्ष में रुपए गिन ही रहे थे कि बाहर पंडित जी ने भाई साधू जी से कहा।
आपके शहर में मैने आज एक अजीब बात देखी।
क्या अजीब बात पंडित जी? भाई साधू जी ने पूछा।
यहां किसी के घर में एक नौजवान की मृत्यु हुई थी और उसके घर में सब जीव कीर्तन कर रहे थे, साज बजा कर गा रहे थे, तबले बजा रहे थे, आनन्द भया मेरी माए, गा रहे थे।
इसमें अजीब क्या है पंडित जी?
ये अजीब ही तो है। हमारे यहां तो अगर कोई मर जाए तो छाती पीट-पीट विलाप करते हैं। दीवारों पर सिर मार-मार कर लहुलुहान हो जाते हैं। शोक में कई दिन भोजन नहीं करते, घर से रुदन और मनहूसियत दिनों तक विदा नहीं होती और आपके शहर में मरने पर भी आनन्द के शब्द गाए जा रहे हैं।
पंडित की यह बात सुन भाई साधू जी ने एक जोर भरी आवाज लगाई।
भाई रूपा…….रहने दो, बाहर आ जाओ, पंडित जी को पैसा नहीं देना।
भाई रूपा जी बाहर आ गए।
पंडित हैरान हो गया और उसने भाई साधू जी से कर्ज ना देने का कारण पूछा।
भाई साधू जी ने भाई रूपा से पूछा,
भाई रूपा, अगर घर में जवान पुत्र की मौत हो जाए तो तुम क्या करोगे
करना क्या है पिता जी, गुरु हरगोबिन्द साहब जी महाराज जी की इच्छा मान कर उसे शिरोधार्य करूँगा। उनका नाम सिमरन करूँगा। इस जान के जहांन के मालिक तो मेरे गुरु साहब जी हैं। अगर वे अपनी सेवा के लिए अपने सेवक को इस दुनिया से बुला लेते हैं तो इसमें रोष कैसा। वैसे भी, अमानती अपनी अमानत जब वापिस मांग ले उसे ख़ुशी-ख़ुशी लौटा देनी चाहिए।
भाई साधू जी बोले,
सुना पंडित जी, अगर आप भगवान की दी हुई जिंदगी की मियाद खत्म होने पर इतना विलाप करते हैं तो मेरे कर्ज की मियाद पूरी होने पर मेरा धन ख़ुशी ख़ुशी नहीं लौटाएंगे। इसलिए मैंने भाई रूपा को खाली हाथ बाहर बुला लिया।
पंडित जी को अपनी भूल का एहसास हो गया। बात समझ आने पर भाई साधू जी ने पंडित जी को उनके जरूरतानुसार धन दिया और भाई साधू जी से जीवन जीने की ये गूढ़ युक्ति ले कर पंडित जी खुशी-खुशी अपने नगर को रवाना हो गए।
शिक्षा : हमें किसी की आमनत को संभाल कर रखना चाहिए और वक्त पर उसे वापिस लौटा देना चाहिए। ऐसा करते वक्त मन में किसी प्रकार की शंका या दु:ख नहीं रखना चाहिए। परमात्मा की रजा में रहना सीखो|
तब तो किसी की हत्या होने पर उसे वाहे गुरु का दूत मान के माफ़ कर देने चाइये और अपने घर मे नाच गाने का आयोजन करना चाहिए
पंडित जी लगता है आपने साखी गौर से नहीं पढ़ी. साखी में ईश्वर को याद करने और हरि कीर्तन करने का उपदेश है ना कि नाच गाने का. अगर किसी की हत्या भी होती है तो उस ईश्वर के आदेश के बिना नहीं होती लेकिन मानव स्वाभाव ही कुछ ऐसा है की इसके लिए भी हत्यारे को दोषी मानते हुए सजा देता है.