Dhansikhi-Saakhi-Bhai Mardana Ka Sawaal Or Salas Rai Johari
भाई मरदाना का सवाल और सालस राय जौहरी
संसार का उद्धार करते हुए गुरू नानक देव जी ने अपने संगी बाला और मरदाना के साथ पटना शहर के बाहर जा डेरा डाल (विश्राम के लिए रुके) लिया। मरदाना ने बाबा जी से शंका प्रकट करते हुए पूछा, सभी संत-महात्मा, सभी ग्रंथ मानव जीवन को अमूल्य रत्न बताते हैं। फिर मानव इस अमूल्य रहमत को सांसारिक विषय विकारों में ही क्यों खो देता है, नाम जप कर जीवन सफल क्यों नहीं कर लेता? बाबा जी ने कहा, भाई मरदाना! मानव जन्म तो अमूल्य रत्न है, परन्तु कद्र नहीं। तुम परीक्षा (परख) करके देख लो।
गुरू जी ने एक कीमती लाल (कीमती लाल पत्थर) भाई मरदाना को देते हुए कहा, इसको शहर में ले जाओ और कीमत का पता कर हमें बताओ। गुरू जी का हुक्म मानते हुए भाई मरदाना जी शहर में आ गए और उस लाल को दिखा, इसकी कीमत पूछने लगे। किसी ने इसका मूल्य दो मूली, किसी ने किलो मिठाई, किसी ने दो गज कपड़ा मूल्य आंका। फिर भाई मतदाना जौहरी बाजार गया जहां किसी ने दस रुपए, किसी ने सौ, किसी ने दो सौ रुपए कीमत बताई। अंतत: भाई मरदाना जी सालस राय जौहरी को यह लाल दिखाया जिसे देख कर उसने कहा, भाई ! तुम्हारा लाल अमूल्य है। करोड़ रुपया भी इसकी कीमत कहना कम है। मैं इसकी कीमत नहीं दे सकता आप सौ रुपया इस की नजर (मुंह दिखाई/किसी वस्तु को देख खुश होकर दी जाने वाली रकम) कबूल करो।
भाई मरदाना जी सौ रुपया लेकर गुरू चरणों में हाजिर हो गए और सारी कथा सुनाई। गुरू जी ने कहा, भाई मरदाना अब तो तुझे तसल्ली हो गई। मानव देह इस लाल के जैसे ही अमूल्य है परन्तु कद्र कोई सालस राय जैसा जौहरी ही कर सकता है, बाकी तुच्छ विषय विकारों में खो देते हैं। अब तुम जाओ और यह सौ रुपया सालस राय को वापस दे आओ।
जब मरदाना पैसे मोडऩे गया तो जौहरी ने लेने से मना कर दिया और कहा यह रुपये लाल की नजर थे अब मैं नहीं ले सकता। मरदाना जी ने कहा, जी मेरा मालिक भी नहीं ले रहा। मरदाना जी बिना रुपए वापिस किए गुरू जी के पास आ गए तो गुरू जी ने फिर से रुपए वापिस करने के लिए भेज दिया। यह रुपए ना तो बाबा जी रख रहे थे और ना ही सालस राय। मरदाना जी ने दोनों के बीच दो तीन चक्कर लगाए।
आखिर सालस राय ने सोचा वह कोई पूर्ण पुरुष ही है, जिसे इतने रुपयों का भी लालच नहीं है। सालस राय ने सौ रुपए वापिस ले लिए और अपने सेवक अधरक्का अरोड़ा के सिर पर कुछ मिठाईयां उठवा गुरू जी के दर्शन करने के लिए हाजिर हो गया। गुरू जी ने कहा, भाई यह तो भाई मरदाना के प्रश्न का उत्तर परिपक्व करके दिखाया है। जिन को करतार ने अक्ल बख्शी है वह इसी तरह मनुष्य देह की कद्र करते हैं बाकी विषय विकारों में फंस यम दंड सहते हैं, पश्चाताप करते हैं। परमेश्वर की भक्ति ज्ञान बिना मानव पशु के समान है।
सालस राय गुरू साहब को विनती कर अपनी धर्मशाल में ले आया और बहुत सेवा चाकरी की। गुरू जी तीन महीने तक सालस राय की धर्मशाल में रहे और अपने उपदेशों से संगत को निहाल करते रहे। जब गुरू जी यहाँ से चलने लगे तो संगत ने कहा कि आप तो जा रहे हैं अब हम किस की संगत करेंगे? किसी की पल्ला/बाँह पकड़वा जाओ? तो बाबा जी ने सालस राय के सेवक अधरक्के को मंजी बख्शी।
इस के बाद सालस राय ने अपनी अमीरी की परवाह न करते हुए अपने सेवक अधरक्के को सब से पहले भेंट रख माथा टेका। बाबा जी जब चलने लगे तो सालस राय ने हाथ जोड़ विनिती की, आप जी के फिर दर्शन कब होंगे? तो बाबा जी ने कहा, गुरमुखों को सदा ही दर्शन है। पटना शहर को वर देते हुए कहा यहाँ भी सत पुरख (गुरू गोबिंद सिंह जी) प्रकट होगा। इसी सालस राय की संतान में से ही विजय चंद मैणी खत्री दसवें पातशाह के परम भक्त था जिसके घर में दसवें गुरू हमेशा जा कर खेला करते थे।
शिक्षा – हमें विषय विकारों में ना फंसते हुए नाम जप कर अमूल्य मनुष्य जन्म सफल करना चाहिए और अपने झूठे अहंकार को त्याग कर गुरुमुखों की संगत करनी चाहिए।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chukk Baksh Deni Ji –