Saakhi – Bhai Kamlia Or Bhai Budhu Shah
भाई कमलिया और भाई बुद्धू शाह
जहाँगीर के शासनकाल में साधु नाम का ईंटों का एक व्यापारी बहुत प्रसिद्ध था। इसकी मौत के बाद इसके पुत्र भाई बुद्धू शाह ने यह सारा कारोबार संभाला। यह लाहौर का रहने वाला था। कुछ लोग भाई बुद्धू शाह का असली नाम साधु भी बताते हैं (भाव साधु इसका पिता नहीं था, साधु और भाई बुद्धू शाह एक ही व्यक्ति के दो नाम थे)। वह मजदूरों से ईंटे बनवा कर, आवों (भट्ठा) में पकवा कर आगे बेचता था। उसका कारोबार इतना बड़ा था कि उसके पास से सरकारी कामों के लिए भी ईंटें खरीदी जाती थी।
वह गुरू अरजन देव जी का श्रद्धालु था। उसने सबसे पहले लाहौर में गुरू साहिब से मुलाकात की थी और गुरू साहिब के कीर्तन और वाणी से प्रभावित होकर उनका सिक्ख बन गया। वह प्रतिदिन चूना मंडी लाहौर की धर्मशाला दरबार में जाया करता था। जब गुरु अरजन देव जी को गुरु रामदास जी ने किसी रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिए लाहौर भेजा था तो गुरु साहिब दो साल से ज्यादा समय तक लाहौर में रहे।
एक बार भाई बुद्धू शाह ने गुरू अरजन देव जी और सिक्ख संगत को अपने घर भोजन (लंगर) पर इस श्रद्धा के साथ बुलाया कि उसके नये डाले गये आवे की सभी ईंटें अच्छी तरह पक्क जाएँ। सिक्ख संगत जब भोजन छक (ग्रहण कर) रही थी, उस समय पर भाई लप्पू पटोलिया, जो भाई कमलिया के नाम से प्रसिद्ध था, बुद्धू शाह के घर आगे पहुँचा जहाँ संगतों को लंगर (भोजन) परोसा जा रहा था। भाई कमलीए के फटे हुए कपड़े देख कर दरवाजे पर खड़े दरबान/सेवक ने दरवाजा बंद कर दिया और उसे अंदर जाने से रोक दिया। उसे खाने के लिए भी कुछ न दिया। सेवक ने उसे यह कह कर टाल दिया, ‘तूं लेट हो गया है। लंगर बांटा जा चुका है।’ भाई कमलिया दरवाजे के बाहर ही खड़ा हो गया।
सिक्ख संगतें द्वारा लंगर ग्रहण करने के बाद बुद्धू शाह ने गुरू अरजन देव जी से विनती की, ‘मेरे मन की भावना है कि इस बार मेरे आवे की ईंटें बढिय़ा पकें और उन्हें बेचने पर मुझे अच्छे पैसे मिल जाएं।’ अरदास करने वाले सिक्ख ने अरदास करते हुए जब कहा, भाई बुद्धू शाह के आवे की ईंटें पक जाएँ, उस समय बाहर से भाई कमलीए ने आवाज लगाई, ईंटें कच्ची ही रहेंगी क्योंकि बुद्धू शाह के आदमियों ने मुझ भूखे को कुछ खाने के लिए नहीं दिया। जब मैंने सेवकों से भोजन माँगा तो उन्होंने जवाब दे दिया और कहा कि लंगर बंट (लंगर समाप्त) चुका है। गुरू अरजन देव जी ने बुद्धू शाह को कहा, भाई कमलीए के कहे अनुसार, अब तुम्हारे आवे की ईंटें कच्ची ही रहेंगी क्योंकि तुम्हारे आदमियों ने एक जरूरतमंद को भोजन नहीं दिया। उसका कहा व्यर्थ नहीं जा सकता। परन्तु सिक्ख संगत की अरदास की भी व्यर्थ नहीं जा सकती। इसलिए तुम्हारी कच्ची ईंटें ही पक्की ईंटों के भाव बिक जाएंगी।
ईश्वर की कुदरत, उस साल बहुत बारिशें हुई। बारिशों के साथ लोगों के पुराने घर तो गिरने ही थे, किले की दीवार भी गिर गई। किले की दीवार बनाने के लिए सूबेदार को पक्की ईंटें कहीं से भी न मिली। किले की दीवार बनानी जरूरी थी। इसलिए सूबेदार ने बुद्धू शाह से उस की कच्ची-पिली ईंटों के पैसे पक्की ईंटों के भाव से अदा कर अपनी दीवार पूरी करवाई। बुद्धू शाह अपनी कच्ची-पिली ईंटों के पैसे पक्की ईंटोंं के भाव ले कर बड़ा खुश हुआ।
भाई बुद्धू शाह गुरू द्वारा किये गए वचन सच साबित होने की खुशी में कई कीमती उपहार और फलों की टोकरी ले कर गुरू चरणों में हाजिर हो गया। यह उपहार देखकर, गुरू साहब ने कहा, बुद्धू शाह! आपको यह उपहार भाई कमलीए के आगे पेश करने चाहिए। तूंने उसको उस दिन भूखा रखा। आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि जब भी आप लंगर करते हो तो दरवाजा सदा खुला रहना चाहिए। सभी जरूरतमन्दें को उन की तसल्ली के अनुसार (भरपेट) खिलाया जाना चाहिए। अन्यथा लंगर लगाने के झूठे दिखावे करने की आवश्यकता नहीं है।
अब आपको लाहौर जाकर भाई लद्धे से मिलना चाहिए और उनकी सहायता से इन तोहफों को भाई कमलीए को पेश करना चाहिए और उनसे माफी मांगनी चाहिए। यदि वह आपको क्षमा कर देता है, तो आपके आवे में ईंटें कभी भी कच्ची नहीं रहेंगी।
भाई साहब ने ऐसा ही किया। जब भाई कमलीए ने उन अनमोल तोहफों को देखा तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई। उन्होंने भाई बुद्धू शाह को इस शर्त पर क्षमा कर दिया कि वह उन नौकरों को दंडित करेगा जिन्होंने उन्हें लंगर में प्रवेश करने से रोक दिया था। अब से बुद्धू शाह ने भी यह बात पल्ले बांध ली कि नंगे और भूखोंं की परमात्मा पहले सुनता है। नंगे को कपड़ा और भूखे को अन्न देने वालों की मुरादें परमात्मा स्वयं पूरी करते हैं।
इतिहास की पड़ताल करने पर पता चलता है कि बुद्धू शाह की मौत जिस जगह हुई उसे वहाँ ही दफना दिया गया और इतिहास यह भी कहता है कि इसकी मौत आवे में गिरने की वजह से हुई थी। यहीं बुद्धू शाह की समाधी बनाई गई थी जो अब बहुत बुरी हालत में है और भाई बुद्धू का आवा नाम से जानी जाती है।
शिक्षा – हमें हर जरूरतमंद और भूखे की मदद करनी चाहिए और लंगर बिना किसी भेदभाव के वितरित करना चाहिए।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chukk Baksh Deni Ji –