Saakhi – Bhai Gopal Ji Or Jamal Khan
भाई गोपाल जी और जमाल खान
भाई गोपाल जी एक सम्मानीय व्यक्ति थे जो गुरू अरजन देव जी महाराज के समय दौरान एक किराने की दुकान चलाते थे। लोग सुरक्षित रखने के उद्देश्य के साथ उनके पास पैसा जमा करवाया करते थे। एक दिन जमाल खान नाम के व्यक्ति ने भाई गोपाल जी के पास 500 सिक्के जमा करवाए। भाई गोपाल जी इन सिक्कों को अपने बही खाते में लिखना भूल गये और ना ही उनको इन सिक्कों को तिजोरी में सुरक्षित रखना ही याद रहा।
कुछ समय बाद जमाल खान ने अपने जमा करवाए 500 सिक्के भाई गोपाल जी से वापस माँगे। भाई गोपाल जी ने अपनी जमा बही देखी तो उसमें जमाल खान के सिक्कों का कोई हिसाब नहीं मिला। फिर गोपाल जी ने अपनी तिजोरी देखी तो उसमें भी जमाल खान के सिक्के नहीं मिले। उसने जमाल खान से कहा कि उसके पास उसका पैसा नहीं है। जमाल खान ने कहा कि वह भाई गोपाल की शिकायत मुसलमान शासक के पास कर देगा अगर वह उसका पैसा वापिस नहीं करेगा। भाई गोपाल ने एक बार फिर बही खाता देखा और खोज की परन्तु सिक्के नहीं मिले। उसने जमाल खान से कहा, ‘मेरे पास आपके पैसे नहीं हैं परन्तु अगर आप कह रहे हो तो मैं आपको 500 सिक्के दे सकता हूँ।’
जमाल खान बादशाह के पास गया तो उसने गोपाल जी को बुला लिया। बादशाह ने कहा कि भाई गोपाल जी ‘मैं क्या सुन रहा हूँ … मैं नानक के सिक्खों को जानता हूँ और आप इस तरह का कोई काम नहीं करोगे परन्तु मैं यह भी जानता हूँ कि जमाल खान झूठ नहीं बोल रहा। भाई गोपाल जी ने कहा कि मेरे पास इसका पैसा नहीं है, परन्तु अगर आप कहेंगे तो मैं उसको 500 सिक्के दे सकता हूँ। बादशाह को समझ नहीं आया कि न्याय कैसे किया जाए ? उसने इसका न्याय ईश्वर पर छोड़ दिया और कहा कि वे एक बड़ी कड़ाही में तेल को गर्म करेंगे और तांबे का एक सिक्का इसमें फेंकेंगे। जो इस सिक्के को बिना जले बाहर निकाल लेगा वही सच्चा होगा।
भाई गोपाल जी ने गुरू जी को ध्यान में रख अरदास की, ‘कुछ लोगों की सहायता के लिए कोई व्यक्ति होता है और कुछ लोगों के पास सहायता के लिए दूसरे लोग होते हैं, परन्तु मेरे लिए आप मेरे एकमात्र मददगार हो। कृपा करके मेरी मदद करो और मेरी रक्षा कीजिए।’ भाई गोपाल जी ने अपना हाथ गर्म तेल में डाला और अपने हाथ या बाजू को बिना किसी नुकसान के सिक्का बाहर निकाल लिया।
फिर जमाल खान ने अपना हाथ गर्म तेल में डाला परन्तु सिक्का उठाने से पहले ही उसका हाथ जल गया। उसको तुरंत डाक्टरी इलाज दिया गया। भाई गोपाल जी परेशान थे कि उनकी वजह से जमाल खान को नुकसान हुआ है। फिर कुछ समय बीता और एक ग्राहक भाई गोपाल जी की दुकान में आया। जब गोपाल जी ने ग्राहक द्वारा चाही गई वस्तु की खोज की तो खाने के समान वाले एक पीपे (कंटेनर) में उनको 500 सिक्के रखे मिले।
वह तत्काल जमाल खान के घर गया और कहा कि मुझे आपके 500 सिक्के मिल गए हैं। जमाल खान ने यह सिक्के लेने से इन्कार कर दिया और कहा कि वह बादशाह के दरबार और गाँव वालों के सामने शर्मिंदा हो चुका है इसलिए यह पैसे भाई गोपाल जी को ही रखने चाहिए। भाई गोपाल जी ने कहा कि यह पैसा उसका नहीं था और उसको गुरू जी द्वारा उन चीजें को रखने की इजाजत नहीं है जो उनकी ना हो।
जमाल खान ने इस शर्त पर पैसा स्वीकार करने के लिए सहमति दे दी कि गोपाल जी उसकी मुलाकात गुरू जी के साथ करवाएंगे। भाई गोपाल जी और जमाल खान दोनों गुरू जी के साथ मुलाकात के लिए पहुँचे तब दीवान चल रहा था और गुरू साहब दीवान बीच विराजमान थे। जैसे ही भाई गोपाल ने गुरू जी को देखा, उनकी आँखों ने गुरू जी के चरण कमलों को अपने आँसुओं से धो दिया। गुरू जी ने भाई गोपाल जी से कहा ‘भाई गोपाल तुम गुरू जी के घर में स्वीकार कर लिये गये हो।’ जमाल खान ने गुरू जी को सवाल किया ‘मैं और गोपाल दोनों सच्चे थे परन्तु मेरा हाथ तेल ने जला दिया परन्तु उसका नहीं, इसका क्या कारण था ?’
गुरू जी ने कहा, ‘सबसे पहले, भाई गोपाल जी ने जानबूझ कर कुछ गलत नहीं किया। दूसरा, भाई गोपाल जी ने अपनी अरदास उस सर्वशक्तिमान परमात्मा के चरणों में की जिस पर उसको पूर्ण विश्वास था और जिसने उसकी जरूरत के समय मदद की। जब तुमने अपना हाथ तेल में डाला, तो आपने अपनी मदद के लिए अलग-अलग पीरों को स्मरण / याद किया, परन्तु तुम्हारे पास किसी एक में विश्वास और भरोसा नहीं था। जमाल खान ने गुरू जी के वचनों से सहमति जताई और कहा कि हाँ उन्होनें अलग-अलग पीरों को मदद के लिए याद किया था।
शिक्षा – किसी भी सम्बन्ध में प्यार भरोसे के साथ शुरू होता है और श्रद्धा विश्वास के बाद। वाहिगुरू (भगवान, अल्लाह, राम, परमात्मा ….) पर भरोसा रखें कि वाहिगुरू हर एक कार्य जो हम कल्पना कर सकते हैं या हमारी कल्पना से भी बाहर है (सांसारिक या रूहानी) कर सकता है। पराई अमानत को जहर के समान मान कर उसे अपने पास नहीं रखना चाहिए।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –