Saakhi – Bhai Ghanhaiya Ji (Hindi)Saakhi - Bhai Ghanhaiya Ji (Hindi)

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भाई घन्हईआ जी

श्री आनंदपुर साहब के पवित्र स्थान पर अत्याचारी मुगलों और धोखेबाज पहाड़ी राजाओं ने सतगुरु जी को जीवित पकडऩे या जान से मार देने और आनंदपुर साहब की पवित्र धरती को सदा के लिए उजाड़ कर तबाह कर देने के लिए घेरा डाल लिया। जंग आरंभ हो गया, सिंह-सूरमों ने छह महीनों तक मुगलों और पहाड़ी फौजों को लोहे के ऐसे चने चबवाऐ कि पहाड़ी और मुगल फौजें दिल हार गई।

इस घोर जंग में सिंह भी शहीद और घायल होते, दूसरे तरफ और पहाड़ी राजे भी बड़ी तादाद मेंं मरते और घायल होते। भाई घन्हईआ जी जल की मश्क भरते और मैदान-ए-जंग में चाहे कोई मगुल हो या धोखेबाज पहाडिय़ा या कोई सिक्ख घायल पड़ा हो, उसको बिना भेदभाव, सभी में परमात्मा की ज्योति देख कर प्यार के साथ जल पिलाते और सारा दिन यह कार्य करते रहते।

भाई घन्हईया जी की इस सम-वृति के कार्य से कुछ सिक्ख खुश नहीं थे। उन्होंने साहब श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के चरणों में शिकायत की कि सच्चे पातशाह! हम बड़े यतनों के साथ, मुगल और पहाड़ी फौजें को तीरों-तुफंगों से घायल करते हैं परन्तु भाई घन्हईआ उन प्यासे, तड़पते को पानी पीला कर फिर से हमारे साथ लडऩे के लिए तैयार कर देता है। लगता है कि घन्हईआ दुश्मन की फौजें के साथ मिला हुआ है।

सतगुरु जी ने सिक्खों की विनती सुनी, मुस्कराए और सिक्खों को हुक्म किया कि भाई घन्हईआ को हमारे सम्मुख पेश करो। थोड़े समय बाद सिक्ख, भाई घन्हईआ को साथ ले कर सतगुरु जी के सम्मुख उपस्थित हुए। सतगुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने भाई घन्हईआ को संबोधन करके कहा कि भाई घन्हईआ! सिक्ख तेरी शिकायत करते हैं। भाई घन्हईआ जी ने विनती की, सतगुरु! दास से भूल हो सकती है, मेरे सिक्ख भाई क्या शिकायत करते हैं? सतगुरु जी ने वचन किया कि सिक्ख तीरों, तुफंगों, नेजों-भालों, बंदूकों से दुश्मन, पहाड़ी और मुगलों को मारते व घायल करते हैं परन्तु तूं उन घायल हुए दुश्मनों को पानी पीला कर फिर सिक्खों के साथ लडऩे के लिए तैयार कर देता है।

यह काम तूं क्यों करता है? भाई घन्हईआ जी ने हाथ जोड़ कर, गले में पल्ला डाल, साहबों के चरणों में विनती की, सतगुरु जी! न मैं किसी मुगल को, न पहाड़ीए को और न ही मैं किसी सिक्ख को पानी पिलाता हूँ, मुझे सभी में आप जी का रूप ही दिखता है। आप के बिना मैं किसी और को पानी नहीं पिलाता।

सतगुरु जी! जब से आप जी ने मेहर दृष्टि की है, मेरी निगाह में न कोई शत्रु है, न मुझे कोई बेगाना दिखता है। मुझे सभी में आप जी की ही ज्योति नजर आती है, इसलिए यह सभी मुझे अपने लगते हैं। पातशाह! अब तो आप जी ने मेहर करके – ना को बैरी नही बिगाना सगल संगि हम कउ बनि आई ॥1॥ (अंग 1299) की खेल वरता दी है। बाकी रही जंगों युद्धों की बात, सतगुरु जी! यह सारा आप जी ने ही खेल-तमाशा रचा है।

सतगुरु कलगीधर जी भाई घन्हईआ का उत्तर सुन कर मुस्कराए और भाई घन्हईआ को अपनी बाहों में लेकर प्यार से गले लगा लिया और अपनी जेब में से मरहम की डिबिया निकाल कर भाई जी के हाथ पर रख दी और वचन किया, घन्हईआ! जहाँ तू जरूरतमंदों में मेरा रूप देख कर जल पिलाकर तृप्त करता है। वहाँ उनके घावों, जख्मों पर मरहम लगा कर पट्टी भी किया कर जिससे उनके जख्मों में होती पीड़ा को राहत मिले और जख्म जल्दी ठीक हो जाएँ।

सिक्खों को संबोधन करके सत्गुरू जी ने वचन किया, भाई सिक्खो! आप अपना काम करते रहो, भाई घन्हईआ को अपना काम करने दो। यह जो कर रहा है, बिल्कुल सही कर रहा है। भाई घन्हईआ किसी पहाड़ी या मगुलों के साथ नहीं मिला हुआ, यह परमात्मा के साथ मिला हुआ है। परमात्मा सब का सांझा है। भाई घन्हईआ की दृष्टि में गुरदेव श्री गुरु अर्जुन देव जी का पवित्र उपदेश बस चुका है – तूं साझा साहिबु बापु हमारा ॥ (अंग 97) और – सभे साझीवाल सदाइनि तूं किसै न दिसहि बाहरा जीउ ॥3॥ (अंग – 97)

गुरसिक्खो समय आएगा, भाई घन्हईआ का पंथ चलेगा और बहुत लोग इस के मार्ग से दिशा प्राप्त करके अपनी खोटी बुद्धि नाश करेंगे। गुरु साहिब ने वचन किया – इह भी अपनो पंथ प्रकाशै। बहु लोगन की कुबुद्धि बिनासै। (सूरज प्रकाश)

शिक्षा – हमें सब को बिना किसी भेदभाव हर जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए।

Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –

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