Saakhi – Baba Atal Rai Ji
साखी बाबा अटल राय जी
एक बार बाबा अटल राय और गुरू तेग बहादुर जी अपने साथियों के साथ खिदो-खुण्डी (हॉकी जैसा देशी खेल) खेल रहे थे। जिस की बारी होती उसे अपनी बारी देनी ही पड़ती थी। एक दिन खेलते खेलते रात पड़ गई और अंधेरा होने के कारण खेल बंद करनी पड़ा। परन्तु बारी मोहन नाम के एक बालक के सिर रह गई। अगले दिन दोनों भाई और ओर बच्चे मोहन के घर गए कि वह आ कर उस के सिर आई बारी दे। सभी बच्चों का ख्याल था कि मोहन बारी से डरता खेलने नहीं आया है।
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जब सभी साथी इकठ्ठा हो कर उस बालक के घर गए तो पता चला कि मोहन को साँप ने डस लिया, जिसके चलते उसकी मौत हो गई है। मौहल्ले के लोग लोग इकठ्ठा थे और मोहन के माता-पिता विलाप कर रहे थे। परन्तु बाबा अटल ने उनके विलाप और भीड़ की परवाह न की और कहने लगे, ‘यह जानबूझ कर मरने का छल कर रहा है ताकि अपनी बारी न देनी पड़े। मैं अभी ही इसको लाठी मार कर बताता हूँ कि बहानेबाजी कैसे की जाती है।’ बाबा अटल राय ने जब मोहन को लाठी से जोर से हिलाया तो वह उठ कर बैठ गया। फिर सभी ताली मार कर हँसने लगे और कहने लगे, बच्चे यह बहानेबाजी नहीं चलेगी, उठ और अपनी रात वाली बारी दो। मोहन उठ कर बाहर आ गया और सभी बच्चों ने फिर से खेलना शुरू कर दिया।
परन्तु मोहन के माँ -बाप और गली मुहल्ले के लोग जानते थे कि मोहन मर चुका था और बाबा अटल राय ने इसको अपनी शक्ति से जिंदा किया है। इसलिए धीरे-धीरे यह समाचार गुरू हरगोबिंद साहब जी के पास भी पहुँच गया। सच्चे पातशाह स्वयं सब कुछ जानने वाले थे, उनको यह पता था कि बाबा अटल राय हर प्रकार की करामात का मालिक था। उसकी समाधी तो पालने में ही लगी रहती थी। उन्होंने ऐसी घटना को ठीक न समझा, क्योंकि महापुरुष कभी करामात नहीं दिखाते।
करामात कहर का नाम है। एक सच्चे सिक्ख का धर्म है कि वह रिद्धिओं-सिद्धिओं पर भरोसा न करे। वह समझते थे कि इस घटना का जब लोगों को पता चलेगा तो जब भी कोई मरेगा तो उसके घर वाले लाश उठा कर बाबा अटल राय के पास ले आया करेंगे कि इसको जिंदा कर दो। इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने बाबा अटल राय को अपने पास बुलाया और कहा, ‘बेटा तुम आज प्रभु का शरीक (प्रभु की बाराबरी) कैसे बन गये हो? यह काम प्रभु का है कि वह किसी को मारे या जिंदा करे। तुमने यह अच्छा काम नहीं किया है। प्रभु ऐसे कारनामों पर खुश नहीं होता।’
बाबा अटल राय चुप रहे, परन्तु अपने पिता की बातों से बहुत शर्मसार हुए। उन्होंने यह मन बना लिया कि अब उनका इस दुनिया में रहना योग्य नहीं होगा। इसलिए उन्होंने उसी समय समाधी लगा कर अपने प्राण त्याग दिए। जब संगत ने उनको देखा, टटोला और हिलाया तो सब हैरान रह गए कि बाबा अटल राय संसार छोड़ कर चले गए थे।
गुरू हरगोबिंद साहब तो पहले ही जान गए थे। उन्होंने बाबा अटल राय का अपने हाथों संस्कार किया और संगत/लोगों को धीरज दिया कि वह इस बारे में दु:खी न हो। उन्होंने सभी को उपदेश दिया कि मानव की जिंदगी और मौत प्रभु के हाथ में है। उस की मर्जी और रजा में ही सब कुछ हो रहा है, इसलिए हमें किसी के जन्म पर न खुश ही होना चाहिए और न मौत पर गम ही करना चाहिए।
शिक्षा – हमें वाहिगुरू की रजा में खुश रहना चाहिए फिर चाहे दु:ख हो या सुख।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chukk Baksh Deni Ji –
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