गुरुद्वारा बीड़ बाबा बुढ्ढा साहिब जी का इतिहास
गुरुद्वारा बीड़ बाबा बुढ्ढा साहिब जी वह पवित्र स्थान है, जहाँ बाबा बुढ्ढा साहिब जी ने माता गंगा जी को पुत्र का वर दिया था। गुरुद्वारा बीड़ बाबा बुढ्ढा साहिब जी अमृतसर से लगभग 20 -25 किलोमीटर दूर खेमकरन रोड नज़दीक कस्बा झबाल के पास सुशोभित है।
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बाबा बुढ्ढा जी को पहली पातशाही से ले कर छठे पातशाह श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी तक सेवा और दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बाबा जी को पाँच गुरू साहिबान जी को गद्दी तिलक करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ है। जब श्री गुरु अमरदास जी गोइन्दवाल साहिब में रहते थे तो उनके परम सेवक बाबा बुढ्ढा साहिब जी संगतों की सेवा और नाम सिमरन में लगे रहते थे। बादशाह अकबर भी गुरू जी का श्रद्धालु था। एक दिन बादशाह अकबर गुरू जी के दर्शन करने के लिए गोइन्दवाल साहब आया और पहले उसने पंगत में बैठ कर परशादा छका और बाद में गुरू अमरदास जी के दर्शन किये।
गुरू जी का हुक्म था कि ‘पहले पंगत पाछे संगत’। अकबर बादशाह ने श्री गुरू अमरदास जी के साथ वचन विलास किये और उनकी सेवा भावना और सहनशीलता देखकर बहुत प्रभावित हुआ। उसके मन में आया कि गुरूघर को कुछ ज़मीन दान में दी जाये। बादशाह ने प्रसन्न होकर अपनी जागीर में से झबाल और ठट्ठे गाँव के बीच की कुछ ज़मीन दान कर दी। इस ज़मीन में छोटा सा जंगल था, जिसको बीड़ भी कहा जाता था। गुरू अमरदास जी ने गोइन्दवाल साहिब से बाबा बुढ्ढा साहिब जी को ज़मीन की सार संभाल के लिए गाँव ठट्ठे भेजा, क्योंकि बाबा बुढ्ढा साहिब जी कृषि बहुत अच्छी तरह जानते थे। बाबा बुढ्ढा साहिब जी गुरू जी का हुक्म मान कर गाँव ठट्ठे आ गए और यहाँ आ कर उन्होंने खेती की। साथ ही जंगल (बीड़) की सार-संभाल भी की। बाबा बुढ्ढा साहिब जी ने यहां गाएं भैंसे पाल ली और साथ ही बच्चों को गुरबानी की शिक्षा और शस्त्र विद्या भी देना शुरु कर दिया। इस तरह इस स्थान का नाम बीड़ बाबा बुढ्ढा साहिब जी पड़ गया।
एक बार माता गंगा जी गुरू घर के बहुत ही कीमती दुशाले सुखा रहे थे। दुशाले देख कर पिरथी चंद की घरवाली कर्मों, जो कि माता गंगा जी की जेठानी लगती थी। अपने पति पिरथी चंद को कहने लगी कि मुझे भी बढ़िया दुशाले ला कर दो, मैंने भी संभाल कर रखने हैं तो पिरथी चंद कहने लगा कि यह दुशाले अपने पुत्र मेहरबान के ही काम आने हैं, क्योंकि माता गंगा जी के घर कौन सा कोई पुत्र है। यह बात माता गंगा जी के कानों में पड़ गई और माता जी बहुत उदास रहने लग गए। माता गंगा जी की उदासी देखकर गुरू अरजन देव जी ने माता गंगा जी को उनकी उदासी का कारण पूछा तो माता गंगा जी ने सारी बात श्री गुरु अरजन देव जी को बतायी। श्री गुरु अरजन देव जी ने माता गंगा जी से कहा कि पुत्रों के दानी बाबा बुढ्ढा साहिब जी बीड़ साहिब में रहते हैं। आप स्वयं आटा पीस कर मिस्से प्रशादे, अचार, प्याज़ और लस्सी का मटका ले कर नंगे पांव जा कर बाबा बुढ्ढा साहिब जी को प्रशादा छकाओ और उनसे अरदास करो कि बाबा जी हमें पुत्र की दात प्रदान कीजिए।
माता गंगा जी ने नंगे पांव बीड़ साहिब में जाकर बाबा बुढ्ढा साहिब जी को प्रशादा छकाया और उनसे पुत्र की दात माँगी। बाबा बुढ्ढा जी ने माता गंगा जी की सेवा भावना से प्रसन्न हो कर कहा कि आप जी के घर में बहुत बड़ा योद्धा पुत्र पैदा होगा। बाबा बुढ्ढा साहिब जी के वर से माता गंगा जी और श्री गुरु अरजन देव जी के घर गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने जन्म लिया।
बाबा बुढ्ढा साहिब जी सिक्ख पंथ की महान एवं सम्माननीय शख्सियत थे। श्री गुरु रामदास जी ने जब श्री दरबार साहिब की स्थापना की तो आप एक बेरी के वृक्ष नीचे बैठ कर संगतों को सेवा के लिए प्रेरित करते थे। श्री दरबार साहिब के पहले मुख्य ग्रंथी होने का भी आप जी को सौभाग्य प्राप्त हुआ है। जब श्री गुरु हरगोबिन्द साहब जी को ग्वालियर के किले में कैद किया गया था तो बाबा बुढ्ढा जी अमृतसर से संगतों को साथ लेकर ग्वालियर जाते रहे। बाबा बुढ्ढा जी की शख्शियत से सिक्ख संगतें बहुत प्रभावित थी। आज भी संगतें बीड़ साहिब में बहुत श्रद्धा के साथ मिस्से प्रशादे, प्याज़ चढाते हैं। माझा के सबसे प्रसिद्ध इस मेले में मालवे की संगत भी एक दिन पहले ही उत्साह से उमड़ आती है। इस स्थान पर हर साल की तरह 6 और 7 अक्तूबर को बहुत भारी जोड़ मेला लगता है।
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